दक्षिणी दिल्ली में एक निजी ट्रस्ट द्वारा संचालित गोशाला में शुक्रवार को 36 गायों की मौत ने उन लोगों के खोखले दावों की पोल खोल दी है जो लोग दिन-रात गोरक्षा की वकालत करते रहते हैं। गोहत्या और जानवरों की तस्करी के नामपर उग्र लोगों का समूह लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर रहा है। इन लोगों की करतूत ने सोशल मीडिया पर एक गरमा-गरम बहस को जन्म दे दिया है। वे नेता जो भीड़ द्वारा हत्या की परोक्ष रूप से अनदेखी करते हैं, अक्सर इस तरह के हमलों के पीछे गोहत्या को मुख्य वजह मानते हैं। मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि गोशालाओं में गायों की मौत गोहत्या से कम नहीं है।
दक्षिणी दिल्ली में यह गोशाला एक ट्रस्ट द्वारा चलाई जा रही थी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के कर्मचारी अक्सर सड़कों या गलियों में भटकती गायों को इस गोशाला में छोड़ जाते थे। इन गायों को इस गोशाला में खाना नहीं मिल रहा था। 20 एकड़ में फैले इस गोशाला में जब इंडिया टीवी रिपोर्टर पहुंचा तो उसने पाया कि वहां हालत बेहद दयनीय थी। यह आश्चर्य की बात थी कि बिना भोजन के इस हालत में गायें कैसे जिंदा थीं।
जो लोग खुद के गोरक्षक होने का दावा करते हैं और गाय को अपनी मां मानते हैं, गोहत्या के खिलाफ खुलकर बोलते हैं लेकिन सड़कों पर घूमती उन लावारिस गायों पर ध्यान नहीं देते हैं जो कूड़े के ढेर में मौजूद प्लास्टिक खाकर असमय मौत के मुंह में समा रही हैं।
इन लोगों का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि इन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गोशालाएं सुचारू रूप से चलें। यह काम पशुओं को ले जा रहे ट्रक को रोकने और ड्राइवरों के साथ मारपीट से ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर गोरक्षक इन गोशालाओं की उचित देखभाल करें तो यह राष्ट्र के लिए एक बड़ी सेवा होगी। ये लोग हजारों गायों की जिंदगियां बचाएंगे ही भीड़ द्वारा हत्या की घटनाएं भी बंद हो जाएंगी। (रजत शर्मा)
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