केरल में जलप्रलय ने 223 लोगों की जान (आधिकारिक आंकड़ा) ले ली है और लगभग 10 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है, जिसमें से अधिकांश लोग अस्थाई राहत कैम्प में हैं। अरबों रुपए की फसल और संपत्तियां बर्बाद हो चुकी हैं। राज्य सरकार ने तत्काल 2,600 करोड़ रुपए की वित्तीय मदद मांगी है। केंद्र ने अपनी ओर से 600 करोड़ रुपए पहले ही जारी कर दिए हैं।
पिछले कुछ दिनों से, मीडिया में स्व. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदर्शिता की चर्चा चलती आ रही है। उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज और उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम गलियारे की शुरुआत की, और गांवों को सड़क से जोड़ने के लिए प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना को लागू किया। वाजपेयी ने हर साल आने वाली बाढ़ और सूखे से निपटने के लिए नदियों को आपस में जोड़ने की योजना भी बनाई थी।
केरल, मध्य प्रदेश और बिहार में बाढ़ के दृश्यों को देखते हुए, मुझे याद है कि कैसे अटल जी ने नदियों को आपस में जोड़ने की योजना बनाने का आदेश दिया था और इस काम की जिम्मेदारी सुरेश प्रभु को सौंपी गई थी। दुर्भाग्य से, 2004 के लोक सभा चुनाव में वाजपेयी सरकार की हार हुई, और इस योजना पर काम वहीं रुक गया।
भारत में हर साल, शहरों और देहात में लोगों को गर्मियों में सूखे के संकट का सामना करना पड़ता है, इसके बाद मानसून के दौरान नदियों में बाढ़ का तांडव शुरु हो जाता है। नदियों को आपस में जोड़ने वाले इस मिशन का उद्देश्य बाढ़ को रोकना और नदियों के पानी को कम बारिश वाले इलाकों में पहुंचाना था। अगर बाद की सरकारों ने नदियों को आपस में जोड़ने की योजना को लागू किया होता, तो ऐसी जलप्रलय को रोका जा सकता था। अब यह समय है कि केंद्र, राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक निर्धारित समय के अन्दर नदियों को आपस में जोड़ने की योजना पर काम करे। (रजत शर्मा)
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