अयोध्या विवाद मामले में मंगलवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में हाजिर हुए और उन्होंने न्यायाधीशों से इस केस की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद शुरू करने का आग्रह किया लेकिन न्यायाधीशों की पीठ ने इस आग्रह को ठुकरा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अगले साल 8 फरवरी से सुनवाई शुरू करने की तारीख तय कर दी है।
न्यायालय की कार्यवाही स्थगित होने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यह मांग रखी कि कांग्रेस को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए कि वह अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण चाहती है या नहीं। कांग्रेस अपने उसी पुराने रुख पर कायम है कि वह अदालत के आदेश का पालन करेगी। हाल के दिनों में कांग्रेस अक्सर बीजेपी और संघ परिवार का मजाक उड़ाती रही है और यह आरोप लगाती रही कि मंदिर निर्माण में इन लोगों की कोई रुचि नहीं है, बीजेपी की रुचि इस मुद्दे के जरिए चुनावी बढ़त हासिल करने की रही है। आपको याद होगा कि मनीष तिवारी और दिग्विजय सिंह कई बार यह कहते सुने गए 'मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे'। अब बीजेपी के नेता कह रहे हैं कि मंदिर जल्दी बने, कोर्ट जल्दी तारीख बताए या आपसी सहमति से फैसला हो। लेकिन कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि इस सवाल को 2019 के लोकसभा चुनाव तक जिंदा रखा जाए।
मंसूबा साफ है। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव तक राम मंदिर नहीं बन पाया तो राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं को यह कहने का मौका मिलेगा कि केंद्र और यूपी में सत्ता में रहते हुए भी बीजेपी मंदिर नहीं बनवा पाई। मौजूदा समस्या टाइमिंग से जुड़ी हुई है। कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में यह बात गुजरात चुनाव के मौके पर कह दी जहां पूरी कांग्रेस राहुल गांधी को एक जनेऊधारी हिन्दू सिद्ध करने में लगी हुई है और उन्हें शिवभक्त बता रही है। अब ऐसे मौके पर अगर अमित शाह राहुल गांधी से पूछें कि राम मंदिर पर उनकी क्या राय है? कांग्रेस का क्या स्टैंड है? तो वाकई में मुश्किल तो होगी। (रजत शर्मा)
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