Rajat Sharma's Blog: राहुल की अयोग्यता और अहंकार के चलते कांग्रेस लोकसभा चुनाव हारी
अपनी अयोग्यता को छिपाने के लिए राहुल गांधी को देश की संस्थाओं- मीडिया, न्यायापालिका और चुनाव आयोग का अपमान करने का कोई हक नहीं हैं। जनता ने अगर राहुल गांधी को वोट नहीं दिया तो इसमें संस्थाएं क्या कर सकती हैं?
राहुल गांधी ने बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा वापस लेने की सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए एक 'फेयरवेल नोट' जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि बीजेपी से मुकाबला करने के लिए पार्टी में 'आमूल-चूल बदलाव की जरूरत' है।
उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से कांग्रेस अध्यक्ष के उल्लेख को भी हटा दिया। उन्होंने अपनी पहचान के तौर पर खुद को पार्टी का सदस्य और संसद सदस्य बताया है। लोकसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा, 'यह उपयुक्त नहीं होता कि मैं दूसरों को जवाबदेह ठहरा देता और कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर अपनी जिम्मेदारी को नजरअंदाज कर देता।’
राहुल गांधी ने लिखा, ‘मेरे कई साथियों ने सुझाव दिया कि मैं अगले कांग्रेस अध्यक्ष को नॉमिनेट कर दूं। यह महत्वपूर्ण है कि कोई और हमारी पार्टी का नेतृत्व करे, लेकिन मेरे लिए यह उपयुक्त नहीं है कि मैं उस शख्स का चयन करूं।’
राहुल गांधी ने चार पेज के अपने फेयरवेल नोट में पार्टी के वरिष्ठ साथियों पर जमकर निशाना साधा है। भारत में ये आदत है कि शक्तिशाली लोग सत्ता से चिपके रहते हैं, कोई सत्ता का परित्याग नहीं करना चाहता। लेकिन हम सत्ता की इच्छा का परित्याग किये बिना और एक गहरी वैचारिक लड़ाई लड़े बिना अपने विरोधियों को नहीं हरा पाएंगे। राहुल गांधी ने यह भी लिखा कि वे पहले ही यह सुझाव दे चुके हैं कि 'लोगों के एक समूह को नया अध्यक्ष चुनने का काम सौंपा जाए।'
अपने फेयरवेल नोट में राहुल गांधी ने पहले तो लोकसभा चुनाव में हुई हार की पूरी जिम्मेदारी खुद ली, और दूसरे पेज उन्होंने हार के लिए पूरे सिस्टम को जिम्मेदार बताया।
राहुल गांधी ने लिखा, '2019 का चुनाव हम किसी राजनीतिक दल के साथ नहीं लड़ रहे थे। यह लड़ाई हम भारतीय स्टेट की पूरी मशीनरी से लड़ रहे थे जिसमें हर संस्था को विपक्ष के खिलाफ खड़ा किया गया था.. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए किसी देश के संस्थानों की निष्पक्षता की जरूरत होती है। एक स्वतंत्र प्रेस, एक स्वतंत्र न्यायपालिका, और एक पारदर्शी चुनाव आयोग जो उद्देश्यपूर्ण और तटस्थ है, के बिना चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकता।'
मुझे राहुल गांधी की इस टिप्पणी पर सख्त आपत्ति है। अपनी अयोग्यता को छिपाने के लिए राहुल गांधी को देश की संस्थाओं- मीडिया, न्यायापालिका और चुनाव आयोग का अपमान करने का कोई हक नहीं हैं। लोकतंत्र के इन तीन स्तंभों ने अपना काम जिम्मेदारी से किया, और जनता ने अगर राहुल गांधी को वोट नहीं दिया तो इसमें संस्थाएं क्या कर सकती हैं? उन्हें संस्थानों को दोषी नहीं ठहराना चाहिए।
समस्त संस्थाओं को दोषी बताकर राहुल गांधी ने राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, कर्नाटक और पंजाब की अनदेखी की है जहां पहले बीजेपी की सरकारें थी। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने इन राज्यों में बीजेपी को हराकर सत्ता हासिल की थी। यहां उनका मुकाबला कौन सी मशीनरी से था? इन राज्यों में जब बीजेपी की सरकारें थी तो फिर कांग्रेस कैसे जीत गई?
यह कहकर कि 'किसान, बेरोजगार युवा, महिलाएं, आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यकों को बहुत तकलीफ होगी' (मोदी की जीत से), राहुल गांधी ने देश के मतदाताओं का अपमान किया है। उन्होंने भारत के लोकतंत्र का अपमान किया है।
राहुल गांधी को यह मानना होगा और समझना होगा कि पांच साल तक नरेंद्र मोदी की सरकार का कामकाज देखने और इसका आकलन करने के बाद देश की जनता जिसमें किसान, बेरोजगार, नौजवान, महिलाएं, आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यकों शामिल हैं, ने नरेंद्र मोदी को प्रचंड बहुमत के साथ विजयी बनाया। देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के नेता होने के नाते राहुल गांधी को विनम्रता के साथ जनता के फैसले को सिर झुकाकर स्वीकार करना चाहिए था। ऐसा करने के बजाय राहुल पार्टी की शर्मनाक हार के लिए मीडिया, न्यायपालिका और चुनाव आयोग को जिम्मेदार बता रहे हैं।
असल बात ये है कि राहुल गांधी को न मोदी ने हराया, न बीजेपी ने हराया और न ही कांग्रेस के नेताओं की वजह से यह हार हुई। कांग्रेस को देश की जनता ने राहुल गांधी के अहंकार की वजह से हराया। कांग्रेस की ये हालत राहुल गांधी की नासमझी और जिद के कारण हुई है।
राहुल को याद रखना चाहिए कि देश भर में कांग्रेस के करोड़ों कार्यकर्ताओं ने चुनाव में जी-तोड़ मेहनत की और 10 करोड़ों लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया। अपनी ही पार्टी के नेताओं पर दोष मढ़कर राहुल ने इन लोगों का भी अपमान किया है।
इसके अलावा, अगर राहुल गांधी को वाकई लगता है कि संस्थानों (इंस्टिट्यूशंस) ने उन्हें हराया....सरकारी मशीनरी ने उनकी पार्टी को हराया, तो फिर इस्तीफा देने की जरूरत क्या थी? स्पष्ट रूप से उनकी बातों में विरोधाभास है और उन्हें इसका अहसास होना चाहिए। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 03 जुलाई 2019 का पूरा एपिसोड