Rajat Sharma's Blog: चीन को लद्दाख से वापस जाना ही होगा, भले ही इसमें थोड़ा वक्त लग जाए
आज 1962 वाला भारत नहीं है जब चीनी सैनिकों ने हमारे देश पर हमला करके एक बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया। चीनी रणनीतिकारों को पता है कि आज भारत तुरंत और बहुत ही कड़ा पलटवार करेगा।
भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में जबर्दस्त तनाव पैदा हो गया है। मुद्दा चीन द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती और घुसपैठ से जुड़ा है। अभी तक इन इलाकों में टकराव का कोई हल नहीं निकल पाया है जहां चीनी सैनिक बख्तरबंद गाड़ियां लेकर घुस आए हैं औऱ तंबू गाड़कर बैठे हैं। ये इलाके पिछले कई दशकों से भारत के नियंत्रण में रहे हैं।
मंगलवार को भारत ने यह साफ कर दिया कि उसके सैनिक अपनी जगह से तब तक पीछे नहीं हटेंगे जब तक कि चीन के सैनिक अपनी पुरानी पोजिशन पर वापस नहीं चले जाते और LAC पर सेनाओं की गश्त अपनी सामान्य अवस्था में नहीं आ जाती। दोनों देशों ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए अपने डिप्लोमैटिक चैनलों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, जबकि ऑपरेशनल लेवल पर सेना के अधिकारी भी स्थिति को आसान बनाने के लिए दूसरे पक्ष के संपर्क में हैं। बुधवार को चीनी विदेश मंत्रालय ने राजनयिक स्तर पर हुई बातचीत में तनाव को कम करने के संकेत दिए।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को ट्वीट कर भारत और चीन के बीच 'उग्र सीमा विवाद' पर मध्यस्थता की पेशकश की। ट्रंप ने ट्वीट किया, ‘हमने भारत और चीन दोनों को सूचित किया है कि अमेरिका दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाने में मध्यस्थता के लिए तैयार है, इच्छुक है और सक्षम है। यदि दोनों देश इस बात के लिए राजी हों तो हम ऐसा कर सकते हैं। धन्यवाद!’ भारत या चीन ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश पर क्या फैसला लेंगे, यह कोई भी बता सकता है।
आइए समझते हैं कि पूर्वी लद्दाख में आखिर हुआ क्या था। चीन की भारत के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है जो 4 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश से जुड़ती है। गलवान घाटी और पैंगोंग झील के इलाके में चीनी सेना की घुसपैठ की वजह से यह विवाद पैदा हुआ है। 5 मई को इन दोनों जगहों पर भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने आ गए थे। भारतीय सेना पैंगोंग झील के पास एक सड़क और एक छोटे से पुल का निर्माण कर रही थी जिसपर चीनी सैनिकों ने आपत्ति जताई। चीनी सैनिक इस इलाके में बाड़ लगाने के लिए पत्थर-डंडे और कंटीले तार लेकर आ गए और इसके बाद टकराव शुरू हो गया।
इस बीच चीन की सेना ने अक्साई चिन से गुजरने वाली गलवान नदी के पास अपने सैनिकों को तैनात कर दिया। इस इलाके में लगभग 4,000 चीनी सैनिक टेंट और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ घुस आए। गलवान घाटी श्योक और गलवान नाम की नदियों के बीच एक ऐसे स्थान पर स्थित है जहां ये दोनों नदियां मिलती हैं। भारतीय सेना पहले ही श्योक नदी पर एक पुल का निर्माण कर चुकी है और इसने लेह से इस इलाके को जोड़ने के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण एक 255 किमी लंबी सड़क भी बनाई है। पहले हमारे सैनिकों को यहां तक पहुंचने में 23 घंटे लगते थे और अब यह अवधि घटकर केवल 12 घंटे रह गई है। दौलत बेग ओल्डी में भारतीय सैनिकों का एक एयरफील्ड है।
चीनी सेना नहीं चाहती कि इंडियन आर्मी इस इलाके में अपनी स्थिति मजबूत करे। चीनी सेना द्वारा की गई किसी भी चालबाजी का मुकाबला करने के लिए भारत ने तीन ब्रिगेडों की तैनाती की है। चीनियों ने कभी नहीं सोचा था कि भारत इतना तगड़ा पलटवार करेगा। फिलहाल, चीनी सैनिकों ने गलवान घाटी में टेंट लगा दिए हैं और भारी मात्रा में हथियार एवं गोला-बारूद भी रखे हैं। हमारी सेना स्थिति पर गहरी नजर रख रही है।
चीन इन दोनों इलाकों पर लगातार अपना दावा करता रहा है। इसका अंग्रेजी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' गलवान घाटी को चीन का इलाका बताता है। चीन के इस सरकारी अखबार ने आरोप लगाया कि भारतीय सेना अवैध रूप से इस क्षेत्र में मिलिटरी फैसिलिटी का निर्माण कर रही है और चीन ने इस पर आपत्ति जताई है। सैटेलाइट इमेज से पता चलता है कि चीन ने गलवान घाटी में टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ अपनी बॉर्डर डिफेंस रेजिमेंट के लगभग 5,000 सैनिकों को तैनात किया है।
गलवान नदी का सामरिक महत्व है। यह काराकोरम पर्वतमाला से लेकर अक्साई चिन के मैदानों तक बहती है। चीन ने 50 के दशक के दौरान इस इलाके पर अवैध तरीके से कब्जा कर लिया था। उस समय तक चीन नदी के पूर्वी हिस्से पर अपना दावा करता था, लेकिन 60 का दशक आते-आते वह नदी के पश्चिमी हिस्से पर भी दावा करने लगा।
जुलाई 1962 में गोरखा रेजिमेंट की एक टुकड़ी ने गलवान घाटी में जब अपना एक कैंप लगाया तो चीनी सैनिकों ने उन्हें घेर लिया। यह 1962 की जंग के दौरान सबसे लंबी घेराबंदियों में से एक थी, जो 22 अक्टूबर तक जारी रही। चीनी सेना ने बड़ी तोपों का इस्तेमाल करके हमारी चौकी को नष्ट कर दिया। जंग के बाद चीनी सैनिक इलाके में लौट आए और अपना अवैध कब्जा बनाए रखा। चीन एक ऐसे इलाके पर अपना दावा करता है जो भारतीय सीमा में 2 किलोमटर अंदर, श्योक घाटी की पहाड़ियों तक फैला हुआ है। गलवान नदी उसी जगह पर श्योक नदी से मिलती है और फिर आगे चलकर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बहने वाली सिंधु नदी में मिलती है।
यह एक कड़वी सच्चाई है कि चीन ने एलएसी पर अपने 5,000 सैनिकों को तैनात किया है। सामान्य दिनों में वहां इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती नहीं होती है। बुधवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ एक बैठक की, जिसके बाद जनरल रावत ने प्रधानमंत्री को भारत के सामने उपलब्ध सैन्य विकल्पों के बारे में जानकारी दी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल उन उपायों पर भी काम कर रहे हैं जिनकी चीन की आक्रामक योजनाओं का मुकाबला करने में जरूरत पड़ सकती है। भारत की कड़ी प्रतिक्रिया के चलते ही बुधवार को चीनी विदेश मंत्रालय के सुर धीमे हो गए।
मेरा मानना है कि चीन पूर्वी लद्दाख में पीछे हट जाएगा, हालांकि इसमें कुछ समय लग सकता है। इसके तीन कारण नजर आते हैं। पहला, 2020 में भारत के पास नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत नेता और आज 1962 वाला भारत नहीं है जब चीनी सैनिकों ने हमारे देश पर हमला करके एक बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया। चीनी रणनीतिकारों को पता है कि आज भारत तुरंत और बहुत ही कड़ा पलटवार करेगा।
दूसरा, वैश्विक स्तर पर चीन बुरी तरह घिरता जा रहा है और अमेरिका सहित अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाएं कोरोना वायरस महामारी के लिए उसे जिम्मेदार ठहरा रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो शुरू-शुरू में कोरोना वायरस को 'चीनी वायरस' भी कह दिया था। चीन एलएसी पर घुसपैठ को अंजाम देकर दुनिया का ध्यान हटाना चाहता है। तीसरा, अधिकांश ग्लोबल कंपनियां चीन से अपना कारोबार समेटना चाहती हैं और भारत में निवेश करने की इच्छुक हैं। चीन के रणनीतिकारों को अब अंदाजा हो गया है कि नरेंद्र मोदी से टक्कर लेना आसान नहीं है। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 27 मई 2020 का पूरा एपिसोड