सीबीएसई पेपर लीक मामले की जांच के दौरान यह पता चला कि दसवीं क्लास का गणित प्रश्नपत्र जो कुछ छात्रों और ट्यूटर्स के जरिए लीक हुआ था, उसे परीक्षा से पांच दिन पहले सीबीएसई के सीनियर अधिकारी के पास एक अभिभावक ने भेजा था। अधिकारी ने इसे एक रूटीन के तौर पर जूनियर पुलिस अधिकारी के पास जांच के लिए भेज दिया और सप्ताहांत छुट्टियों की वजह से इस अवधि में कुछ नहीं हुआ। पांच दिन बाद जब परीक्षा हुई और यह पाया गया कि प्रश्न-पत्र बिल्कुल वही हैं जिन्हें लीक किया गया था, तो लोग सन्न रह गए। सीबीएसई ने परीक्षा को रद्द कर दिया और इसे फिर से कराने का आदेश जारी किया है।
यह साफ है कि प्रश्न-पत्र लीक होने की बात को सीबीएसई प्रबंधन ने गंभीरता से नहीं लिया अन्यथा इस पूरी स्थिति से बचा जा सकता था। उधर इस मामले की जांच कर रही दिल्ली पुलिस की SIT (विशेष जांच दल) अब तक अंधेरे में तीर मार रही है। वह उन छात्रों और ट्यूटर्स से पूछताछ कर रही है जिन्हें अपने व्हाट्स एप पर लीक प्रश्न-पत्र मिला था। पुलिस अभी तक यह नहीं पता लगा पाई है कि इस लीक के पीछे मास्टमाइंड कौन है। सीबीएसई के अधिकारी इस पूरे मामले में गलती मानने के बजाए गोलमोल जवाब दे रहे हैं।
सीबीएसई को जवाब देना चाहिए कि अगर उनके अधिकारियों को पर्चा लीक होने की जानकारी पांच दिन पहले मिल गई थी तो उन्होंने तुरंत कोई एक्शन क्यों नहीं लिया। बोर्ड परीक्षा को कैंसिल किया जा सकता था और दूसरा पेपर सेट किया जा सकता था, लेकिन सीबीएसई ने कुछ नहीं किया।
यह सरासर लापरवाही का मामला है और उन लाखों बच्चों के साथ अन्याय है जिन्होंने इस परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत की। पुलिस उन लोगों तक पहुंचने की कोशिश तो कर रही है जिन्होंने पर्चा लीक किया। लेकिन सरकार को सीबीएसई के उन अफसरों के खिलाफ भी एक्शन लेना चाहिए जो परीक्षा सही तरीके से कराने के लिए जिम्मेदार थे और जिन्होंने शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया। (रजत शर्मा)
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