A
Hindi News भारत राष्ट्रीय मुम्बई आतंकवादी हमले की भयावह तस्वीरें भारत के दिलोदिमाग में ताजा हैं: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

मुम्बई आतंकवादी हमले की भयावह तस्वीरें भारत के दिलोदिमाग में ताजा हैं: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को कहा कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की ‘‘भयावह तस्वीरें’’ आज भी भारत के दिलोदिमाग में ताजा हैं और हम पर पीड़ितों को न्याय दिलाने की ‘‘नैतिक जिम्मेदारी’’ है।

President Ramnath Kovind- India TV Hindi President Ramnath Kovind

नयी दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को कहा कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की ‘‘भयावह तस्वीरें’’ आज भी भारत के दिलोदिमाग में ताजा हैं और हम पर पीड़ितों को न्याय दिलाने की ‘‘नैतिक जिम्मेदारी’’ है। यहां आयोजित ‘संविधान दिवस समारोह’ में कोविंद ने मुंबई की इस घटना जैसे आतंकी हमलों से उत्पन्न चुनौतियों के बारे में अन्य गणमान्य लोगों की चिंताओं को साझा किया। कोविंद ने कहा, ‘‘मैं आज के दिन मुंबई में हुए आतंकी हमले का जिक्र करना चाहता हूं, ठीक दस साल बाद। वे भयावह तस्वीरें अब भी भारत के दिलोदिमाग में ताजा हैं। राष्ट्र और समाज के तौर पर, हम पर नैतिक जिम्मेदारी है कि हम पीड़ित लोगों और उनके परिवारों को न्याय दिलाएं।’’

संविधान दिवस 26 नवम्बर को मनाया जाता है। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को मंजूर किया था और वह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था। कोविंद ने संसदीय कामकाज में बार-बार पड़ने वाले व्यवधान और अदालतों में मामलों की सुनवाई बार - बार स्थगित होने को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि राजनीति के क्षेत्र में ‘‘न्याय’’ का उद्देश्य सिर्फ स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव और वयस्क मताधिकार का सार्वभौम इस्तेमाल करना ही नहीं है, बल्कि यह चुनाव प्रचार खर्च में पारदर्शिता रखने और बेहतर करने की भी मांग करता है तथा सरकार यह करने की कोशिश कर रही है। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने कहा कि संविधान के सुझावों पर ध्यान देना ‘हमारे सर्वश्रेष्ठ हित’ में है और ऐसा नहीं करने से अराजकता तेजी से बढ़ेगी।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमारा संविधान हाशिए पर पड़े लोगों के साथ ही बहुमत के विवेक की आवाज है। इसका विवेक अनिश्चितता तथा संकट के वक्त में हमारा मार्गदर्शन करता है।’’ उच्चतम न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, केन्द्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद और उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) के प्रमुख विकास सिंह ने मुंबई में हुए आतंकी हमले का जिक्र किया। इस हमले में बड़ी संख्या में लोगों की जान गई थी। विधि मंत्री ने कहा कि आतंकवादी और कुछ अन्य लोग आतंकवादियों के मानवाधिकारों की बातें करते हैं लेकिन इस तरह के हमलों के शिकार लोगों के मानवाधिकारों का क्या होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमें समझना चाहिए कि आतंकवादी बहुत घातक हथियारों से लैस हैं। वे मानवाधिकार और निष्पक्ष सुनवाई की भी मांग करते हैं जो हमें देना चाहिए लेकिन अर्थहीन हमलों के पीड़ितों के मानवाधिकारों का क्या होगा, दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए, हमें इस पर चर्चा और बहस करनी चाहिए।’’ 

प्रसाद ने कहा, ‘‘आतंकवादी मानवाधिकार मांगते हैं क्योंकि हमारा संविधान इन्हें देता है लेकिन आतंकी हमलों के शिकार लोगों के मानवाधिकारों का क्या होगा? इस बारे में हमें चर्चा और बहस करनी चाहिए।’’ न्यायमूर्ति लोकूर ने कहा कि देश ने 26 नवंबर 2008 को आतंकवादियों द्वारा पेश बड़ी चुनौती का सामना किया था ‘‘जब देश की वित्तीय राजधानी में असामान्य रूप से बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएं और बच्चे आतंकी हमले के शिकार हुए और इसमें 250 से अधिक लोगों की मौत हुई।’’ उन्होंने कहा, ‘‘आज भी, कुछ ताकतों द्वारा इस तरह की चुनौतियां पेश की जा रही हैं और हमें एकजुट होकर उनका सामना सतर्कता से करना चाहिए। हमारे संविधान की अखंडता हमारे लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय होनी चाहिए और हमें याद रखना चाहिए कि मिलकर हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।’’

एससीबीए प्रमुख विकास सिंह ने कहा कि ‘‘आतंकवादियों को पछाड़ने के लिए’’ हमें एक कानून की जरूरत है। कानून के द्वारा, मीडिया को आतंकवादी हमलों के साजिशकर्ताओं और संगठन के नामों को प्रकाशित करने से रोका जाना चाहिए क्योंकि इस तरह के हमले का मुख्य उद्देश्य लोकप्रियता हासिल करना होता है। कोविंद ने कहा कि संविधान ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों का बंटवारा किया है। इन तीनों को संविधान को कायम रखने की जिम्मेदारियां दी हैं ताकि वे इसकी (संविधान की) आशाओं एवं उम्मीदों को साकार कर सकें। उन्होंने कहा कि संविधान का संरक्षण करना और उसे मजबूत करना भारत के लोगों की साझेदारी के साथ इन तीनों संस्थाओं का साझा कर्तव्य है। 

राष्ट्रपति ने संसद की कार्यवाही में बार-बार पड़ने वाले व्यवधान को लेकर नाराजगी जताई। उन्होंने अदालतों में मामलों की सुनवाई बार-बार स्थगित होने के चलते वादियों को होने वाली परेशानी को लेकर भी चिंता जताई। हालांकि न्यायपालिका इसका सर्वश्रेष्ठ हल करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि संविधान को अंगीकार करना भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में एक मील का पत्थर है। उन्होंने कहा कि संविधान में शायद सबसे ज्यादा गतिशील शब्द ‘‘न्याय’’ है। कोविंद ने कहा कि संविधान स्वतंत्र भारत का आधुनिक ग्रंथ है। संविधान नागरिकों को सशक्त करता है, वहीं नागरिक भी संविधान का पालन कर उसे मजबूत बनाते हैं।

Latest India News