नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा की सीटें 543 से बढ़ा कर 1000 करने और राज्यसभा की सीटें भी बढ़ाने की सोमवार को हिमायत की। मुखर्जी ने इसके पीछे यह दलील दी कि भारत में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के लिए मतदाताओं की संख्या आनुपातिक रूप से बहुत ज्यादा है। इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित द्वितीय अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति व्याख्यान देते हुए उन्होंने सत्तारूढ़ दलों को ‘‘बहुसंख्यकवाद’’ के खिलाफ आगाह किया। उन्होंने कहा कि लोगों ने उन्हें संख्यात्मक बहुमत दिया होगा लेकिन अधिकतम मतदाताओं ने कभी किसी एक पार्टी को समर्थन नहीं दिया।
उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर अपना संदेह भी जताया। उन्होंने कहा कि यह संवैधानिक संशोधनों के बाद किया जा सकता है लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि निर्वाचित सदस्य भविष्य में किसी सरकार पर भरोसा नहीं खोएंगे। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि लोकसभा की क्षमता को 1977 में संशोधित किया गया था जो 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था और उस वक्त देश की आबादी 55 करोड़ थी। उन्होंने कहा कि आबादी तब से दोगुने से ज्यादा बढ़ गई है और परिसीमन पर लगी रोक को हटाने के लिए यह मजबूत दलील है।
उन्होंने कहा कि आदर्श रूप से इसे (लोकसभा में सदस्यों की संख्या) बढ़ा कर 1000 कर दिया जाना चाहिए। इंडियन फाउंडेशन की ओर से आयोजित व्याख्यान में मुखर्जी ने वाजपेयी की आम सहमति बनाने वाले नेता के तौर पर तारीफ की। मुखर्जी ने कहा कि वाजपेयी ने सबको साथ लेकर काम किया। उन्होंने कहा कि 1952 से लोगों ने अलग अलग पार्टियों को मजबूत जनादेश दिया है लेकिन कभी भी एक पार्टी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं दिए हैं। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘चुनावों में बहुमत आपको एक स्थिर सरकार बनाने का अधिकार देता है।’’
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