नई दिल्ली: मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय, बिना कारण के और पहले से नोटिस दिए बगैर तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के ‘एकतरफा अधिकार’ को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह प्रथा ‘मनमानी, शरिया विरोधी, असंवैधानिक, स्वेच्छाचारी और बर्बर’ है। याचिका में मांग की गई है कि तलाक-उल-सुन्नत के तहत पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय तलाक देने के अधिकार को स्वेच्छाचारी घोषित किया जाए। याचिका 28 वर्षीय मुस्लिम महिला ने दायर की है जिसने कहा कि उसके पति ने उसे ‘3 तलाक’ देकर उसे छोड़ दिया।
‘तलाक-उल-सुन्नत को स्वेच्छाचारी घोषित किया जाए’
जस्टिस रेखा पल्ली के समक्ष गुरुवार को जब यह मामला सुनवाई के लिए आया तो उन्होंने कहा कि चूंकि यह जनहित याचिका की प्रकृति की है इसलिए इसे PIL देखने वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए। याचिकाकर्ता महिला का प्रतिनिधित्व वकील बजरंग वत्स ने किया। इसमें आग्रह किया गया कि पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय तलाक देने के अधिकार को स्वेच्छाचारी घोषित किया जाए। इसमें इस मुद्दे पर विस्तृत दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है और निर्देश देने की मांग की गई है कि मुस्लिम विवाह महज अनुबंध नहीं है बल्कि यह दर्जा है।
28 साल की मुस्लिम महिला ने दायर की है याचिका
याचिका 28 वर्षीय मुस्लिम महिला ने दायर की है जिसने कहा कि उसके पति ने इस वर्ष 8 अगस्त को ‘3 तलाक’ देकर उसे छोड़ दिया और उसके बाद उसने अपने पति को कानूनी नोटिस जारी किया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में फैसला दिया था कि मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा अवैध और असंवैधानिक है। अदालत के इस फैसले के बाद से तीन तलाक कानून के तहत सैकड़ों मामले दर्ज किए जा चुके हैं। वहीं, केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने एक बयान में कहा था कि ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण कानून’ बनने के बाद से देश में तीन तलाक की घटनाओं में 82 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है।
Latest India News