नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय में बृहस्पतिवार को एक जनहित याचिका दायर कर सामाजिक एवं आर्थिक रूप से दबे-कुचले लोगों, खासतौर पर अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के धर्मांतरण को रोकने के लिये उपयुक्त कदम उठाने का केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई। याचिका में दावा किया गया है कि सरकार ने धर्मांतरण रोकने के लिए कुछ नहीं किया है।
याचिका शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की गई। भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया है कि कई व्यक्ति, गैर सरकारी संगठन और संस्थाएं दबे-कुचले लोगों का भयादोहन कर, पैसों का प्रलोभन देकर और जादुई तरीके से स्वस्थ होने का दावा कर, काला जादू सहित अन्य गतिविधियों के जरिए धर्मांतरण कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है, ‘‘कई व्यक्तियों/ संगठनों ने ग्रामीण इलाकों में एससी/एसटी का धर्मांतरण शुरू किया है। सामाजिक-आर्थिक रूप से दबे-कुचले पुरुष-महिलाओं, खासतौर पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचिजत जनजाति में सामूहिक धर्मांतरण पिछले 20 वर्षों में बढ़ा है।’’ इसमें यह भी दावा किया गया है कि आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 2001 के 86 प्रतिशत से घट कर 2011 की जनगणना के मुताबिक 79 प्रतिशत रह गई।
उन्होंने कहा कि यदि कोई कार्रवाई नहीं की गई तो भारत में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उपाध्याय ने जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए एक कानून लाने का सुझाव दिया और इसका उल्लंघन करने वालों को जेल की सजा देने की मांग की।
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