नई दिल्ली: देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (अरशद मदनी समूह) के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने रविवार को आरोप लगाया कि देश में जब भी चुनाव करीब आते हैं तो नफरत का खेल शुरू हो जाता है और ‘खास विचाराधारा’ के लोग अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने लगते हैं। मदनी ने एक बयान में राष्ट्रीय एकता, आपसी मेलजोल और हिंदू मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा दिए जाने पर जोर देते हुए कहा कि धार्मिक घृणा देश को विकास नहीं विनाश के रास्ते पर ले जा रही है।
उन्होंने कहा, “कुछ समय पहले जब कोरोना की दूसरी लहर लोगों की जान ले रही थी तो लोग धर्म से ऊपर उठकर एक दूसरे की सहायता कर रहे थे, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब एक साथ आकर कोरोना पीड़ितों की मदद कर रहे थे और इस घृणा की दीवार को गिरा दिया गया था, जो सांप्रदायिक दलों और संगठनों ने अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए उनके बीच खड़ी की थी।”
मौलाना मदनी ने आरोप लगाया, “लेकिन चुनाव निकट आते ही एक बार फिर घृणा का खेल शुरू हो गया और एक विशेष विचारधारा के लोग पुलिस के संरक्षण में पुरानी मस्जिदों और निहत्थे मुसलमानों को उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर अपना निशाना बनाने लगे हैं। यहां तक कि बूढ़ों को भी नहीं बख़्शा जा रहा है, उनकी दाढ़ी काटी जा रही है, बूढ़ों के साथ यह मामला उपद्रवियों ने धार्मिक घृणा फैलाने के लिए किया जो निन्दनीय है।”
मौलाना मदनी ने आरोप लगाया, “जो लोग देश में घृणा फैलाते हैं, हिंसा करते हैं, वे पकड़े नहीं जाते हैं, बल्कि कुछ लोग टीवी चैनलों पर बैठ कर उनका बचाव करते हैं, इससे स्पष्ट है कि हिंसक लोगों को किसी न किसी प्रकार से राजनीतिक समर्थन प्राप्त है और शायद यही कारण है कि पुलिस भी उन लोगों पर हाथ डालते हुए घबराती है।”
प्रमुख मुस्लिम नेता ने पिछले साल फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों का जिक्र करते हुए बयान में दावा किया, “दिल्ली दंगों में मुसलमान ही अधिक मारे गए, उनकी ही दुकानें लूटी गईं, उनके ही घर जलाए गए, उनकी ही इबादतगाहों को अपवित्र किया गया और फिर उल्टे उन पर ही कड़ी धाराएं लगा दी गईं, जिस कारण उनकी ज़मानत निचली अदालत से नहीं हो रही हैं।"
उन्होंने कहा, "न्याय का यह दोहरा मापदण्ड देश के लिये अति घातक है।” बता दें कि अगले साल उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा समेत कुछ राज्यो में चुनाव होने हैं।
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