सुषमा स्वराज के सामने पाकिस्तान हुआ पस्त, ICJ चुनाव में भारत को हराने की चाल हुई नाकाम
पाकिस्तान के राजनयिकों ने संयुक्त राष्ट्र में ओआइसी के सारे प्रतिनिधियों के बीच लाबिंग की लेकिन इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ। अंतिम राउंड की वोटिंग से पहले वाले राउंड में भारत के पक्ष में तकरीबन दो तिहाई सदस्य देशों ने मतदान किया था। ओआइसी के 56 सदस्य
नई दिल्ली: इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी ICJ में ब्रिटेन को पछाड़कर दूसरी बार सीट हासिल करने वाले भारत की सफलता ने दुनिया के ताकतवर देशों को भी चौंका दिया है। लेकिन यूएन के शीर्ष सूत्रों के अनुसार एक ऐसा भी देश था जो सोमवार को आईसीजे में फाइनल वोटिंग में भारत को हराने के लिए दिन-रात काम कर रहा था। जी हां, आपने सही सोचा। वो देश और कोई नहीं बल्कि पाकिस्तान था। आईसीजे में इस मुल्क का न तो कोई प्रतिनिधि था और न ही उसका कुछ लेना देना था फिर भी भारतीय प्रतिनिधि दलवीर भंडारी को हराने के लिए उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने अपने कुछ करीबी देशों के साथ मिल कर इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) में भारत के खिलाफ और ब्रिटेन के पक्ष में हवा बनाने की कोशिश की। लेकिन जिस तरह का समर्थन भारत को मिला है उससे साफ है कि ओआईसी के भी बहुत सारे देशों ने भारत के पक्ष में वोटिंग की है।
पाकिस्तान के राजनयिकों ने संयुक्त राष्ट्र में ओआइसी के सारे प्रतिनिधियों के बीच लाबिंग की लेकिन इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ। अंतिम राउंड की वोटिंग से पहले वाले राउंड में भारत के पक्ष में तकरीबन दो तिहाई सदस्य देशों ने मतदान किया था। ओआइसी के 56 सदस्य है जबकि अंतिम वोटिंग में ब्रिटेन को 61 वोट मिले है। ब्रिटेन के पक्ष में वोटिंग करने वाले यूरोपीय देशों की संख्या निश्चित तौर पर ज्यादा होगी। इसका साफ मतलब है कि ओआइसी के भी कई देशों ने भारत के पक्ष में वोटिंग की है।
लेकिन भारत को यह कामयाबी अनायास ही नहीं मिली है बल्कि सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाले विदेश मंत्रालय की ओर से इसके लिए आक्रामक कूटनीतिक प्रयास किए गए। भारत को बड़े पैमाने पर समर्थन मिलता देखने पर ब्रिटेन की ओर से क्रिस्टोफर ग्रीनवुड की उम्मीदवारी वापस लिए जाने के बाद सरकारी एजेंसियों को पूरा भरोसा हो गया था कि भारत पहली बार सुरक्षा परिषद के 5 ताकतवर देशों के गठजोड़ से निपट सकेगा। उन्होंने दलवीर भंडारी के लिए समर्थन जुटाने को अपने समकक्षों को 60 से ज्यादा फोन कॉल किए।
भारत को 15 सदस्यों वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ब्रिटेन और 193 देशों की संयुक्त राष्ट्र की आम महासभा में समर्थन मिलता दिख रहा था। ऐसे में इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए सुरक्षा परिषद और महासभा की संयुक्त अधिवेशन का प्रस्ताव दिया था, लेकिन इसका फायदा भारत को ही मिला।
संयुक्त अधिवेशन के प्रस्ताव से पहले वीटो पावर वाले देश ब्रिटेन के समर्थन में दिख रहे थे, लेकिन उनका यह समर्थन संयुक्त अधिवेशन में ब्रिटेन को बढ़त नहीं दिला सकता था। इस प्रस्ताव के बाद वीटो पावर वाले कुछ देशों ने भी अपनी नीति बदली। इसका संकेत मिलते ही ब्रिटेन ने अपने उम्मीदवार को वापस ले लिया। इस तरह भारत ने 70 साल बाद ब्रिटेन को आईसीजे से बाहर रहने के लिए मजबूर कर दिया।