कोलकाता : वैज्ञानिकों की एक टीम ने इंसुलिन की 'थर्मोस्टेबल' किस्म विकसित की है, जिससे इसे कम तापमान में रेफ्रिजेरेट करके रखने की जरूरत नहीं होती है। इसे वैज्ञानिक जगत में एक बड़ी सफलता के रूप में देखा रहा है। फिलहाल इंसुलिन को कम तापमान में रखने के चलते इसके रखरखाव और लाने-ले जाने में विशेष ध्यान की जरूरत होती है। फ्रिज में इसे एक निश्चित तामपान में रखा जाता है। लेकिन इंसुलिन की थर्मोस्टेबल किस्म विकसित होने से अब इसके रखाव में काफी सहूलियत होगी।
वैज्ञानिकों की जिस टीम ने इसे विकसित किया है उसमें कोलकाता के भी दो वैज्ञानिक शामिल हैं जिन्होंने इस रिसर्च का नेतृत्व किया है। एक वैज्ञानिक बोस इंस्टीट्यूट और दूसरा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बॉयोलॉजी (IICB)का है। वहीं दो अन्य वैज्ञानिक इंडियन वैज्ञानिक इंडियान इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्लोलॉजी (IICT) हैदराबाद के हैं।
बोस इंस्टीट्यूट के फैकल्टी मेम्बर सुभ्रांगसु चटर्जी ने कहा, 'आप इसे जब तक चाहें रेफ्रिजरेटर के बाहर रख सकेंगे। इससे दुनिया भर के डायबिटीज मरीजों को काफी सहूलियत होगी। क्योंकि इंसुलिन को साथ ले जाना आसान नहीं था।
उन्होंने कहा, 'हालांकि फिलहाल हम इसे 'इनसुलॉक' कह रहे हैं, हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) से इसका नाम आचार्य जगदीश चंद्र बोस के नाम पर रखने की अपील करने की प्रक्रिया में हैं।'
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका आईसाइंस ने इस रिसर्च की सराहना की है। आईआईसीबी के एक फैकल्टी मेम्बर चटर्जी और पार्थ चक्रवर्ती, ने आईआईसीटी के बी जगदीश और जे रेड्डी के साथ मिलकर इस रिसर्च को पूरा किया था। इन वैज्ञानिकों ने इंसुलिन अणुओं के अंदर चार अमीनो एसिड पेप्टाइड अणुओं का एक मैट्रिक्स पेश करने में सफल हुए, जो रेफ्रिजेट नहीं होने पर भी इंसुलिन अणुओं के जमने को रोकते थे।
इन शोधकर्ताओं का दावा है कि इंसुलिन को अभी 4 डिग्री सेल्सियस के आदर्श तापमान पर रखने की जरूरत है, लेकिन यह नई किस्म 65 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को झेलने में सक्षम होगी। इंसु-लॉक के संरचनात्मक डिजाइन में चार साल के लंबे रिसर्च को डीएसटी और सीएसआईआर द्वारा संयुक्त रूप से वित्तीय मदद दी गई थी।
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