नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राज्यसभा चुनाव में ‘इनमें से कोई नहीं (NOTA)’ विकल्प की अनुमति देने से आज इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने राज्यसभा चुनाव के मतपत्रों में NOTA के विकल्प की इजाजत देने वाली चुनाव आयोग की अधिसूचना को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने आयोग की अधिसूचना पर सवाल उठाया और कहा कि नोटा सीधे चुनाव में सामान्य मतदाताओं के इस्तेमाल के लिए बनाया गया है।
यह फैसला शैलेष मनुभाई परमार की याचिका पर आया है। पिछले राज्यसभा चुनाव में वह गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक थे जिसमें पार्टी ने सांसद अहमद पटेल को उतारा था। परमार ने मतपत्रों में नोटा के विकल्प की इजाजत देने वाली आयोग की अधिसूचना को चुनौती दी थी।
शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि NOTA की शुरूआत करके चुनाव आयोग मतदान नहीं करने को वैधता प्रदान कर रहा है। गुजरात कांग्रेस के नेता ने कहा था कि राज्यसभा चुनाव में यदि NOTA के प्रावधान को मंजूरी दी जाती है तो इससे ‘‘खरीद-फरोख्त और भ्रष्टाचार’’ को बढ़ावा मिलेगा।
बता दें कि 30 जुलाई को उच्चतम न्यायालय ने गुजरात कांग्रेस की याचिका पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान कांग्रेस के साथ एनडीए ने भी राज्यसभा चुनाव में NOTA का विरोध किया जबकि चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय में राज्यसभा चुनाव में NOTA के इस्तेमाल पर कहा है कि ये कदम आयोग ने संज्ञान लेकर नहीं किया बल्कि उसे सुप्रीम के ही आदेश के तहत किया है।
चुनाव आयोग ने इस संबंध मे उच्चतम न्यायालय के 2013 के फैसले का पालन करते हुए राज्यसभा चुनाव में NOTA का इस्तेमाल करना शुरू किया था। अगर वो राज्यसभा चुनाव में NOTA का इस्तेमाल शुरू करता तो ये अदालती आदेश की अवहेलना और अदालत की अवमानना का मामला बनता है।
Latest India News