केवल इमरान ही नहीं, इकबाल और जिन्ना ने भी इस्लामी आतंकवाद का समर्थन किया था
प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा आतंकवादी संगठन अल कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को 'शहीद' कहने से कई लोगों को आश्चर्य हुआ होगा, लेकिन पाकिस्तान के अतीत और वर्तमान से परिचित कोई भी इससे आश्चर्यचकित नहीं होगा।
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा आतंकवादी संगठन अल कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को 'शहीद' कहने से कई लोगों को आश्चर्य हुआ होगा, लेकिन पाकिस्तान के अतीत और वर्तमान से परिचित कोई भी इससे आश्चर्यचकित नहीं होगा। पाकिस्तान ने हमेशा आतंकवादियों का महिमामंडन किया है; पाकिस्तान के जन्म से पहले जब यह सिर्फ एक विचार था, इसके आध्यात्मिक और राजनीतिक पिता (अल्लामा इकबाल और मुहम्मद अली जिन्ना) ने कट्टरपंथी हत्यारों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की थी। हिंसा पाकिस्तान के डीएनए में है।
पाकिस्तान के जन्म से लगभग दो दशक पहले, पंजाब में एक पुस्तक 'रंगीला रसूल' प्रकाशित हुई थी। यह पैगंबर मुहम्मद के विवाहों और सेक्स जीवन पर आधारित थी। एक आर्य समाजी ने छद्म नाम से यह पुस्तक लिखी थी। इसके प्रकाशक लाहौर के महाशय राजपाल थे जो आर्य समाज के एक प्रमुख सदस्य भी थे। जाहिरा तौर पर, यह पुस्तक एक मुस्लिम द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका के खिलाफ हिंदू समुदाय की प्रतिक्रिया थी जिसमें सीता को बेहद अपमानजनक रूप में पेश किया गया था।
मुसलमानों ने हंगामा मचाया। उन्होंने लेखक के नाम का खुलासा करने के लिए राजपाल पर दबाव डाला, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। नतीजतन, उन्हें गिरफ्तार किया गया, धारा 153 ए के तहत मुकदमा चलाया गया और ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया। लाहौर उच्च न्यायालय ने हालांकि उन्हें दोष मुक्त कर दिया।
न्यायाधीश दलीप सिंह ने जिन दलीलों के साथ राजपाल को दोषमुक्त किया था, वे उदारवाद की श्रेष्ठ परंपराओं के अनुकूल थीं। उन्होंने कहा था, "मुझे यह प्रतीत होता है कि धारा (153ए) का उद्देश्य लोगों को एक विशेष समुदाय पर हमले करने से रोकना है और इसका उद्देश्य मृतक धर्मगुरुओं के खिलाफ वाद-विवाद को रोकना नहीं है, भले ही यह कितने ही अपमानजनक और बुरे क्यों न दिखते हों।" मुस्लिम कट्टरपंथी भड़के हुए थे। उन्होंने राजपाल के खिलाफ अभियान चलाया। वे इस हद तक सफल हुए कि लाहौर के एक अनपढ़ युवा इल्म-उद-दीन ने राजपाल की हत्या कर दी। जाहिर है, उसने यह किताब या कोई अन्य किताब नहीं पढ़ी थी।
यह एक कहानी है कि कैसे एक बढ़ई के बेटे ने एक ऐसे व्यक्ति की हत्या करने का फैसला किया जिसे वह नहीं जानता था। उसने एक मस्जिद के पास राजपाल के खिलाफ एक मौलवी को भाषण करते सुना। गुस्से में भीड़ राजपाल के खून के लिए चिल्ला रही थी: 'मुसलमानों! शैतान राजपाल ने अपनी गंदी किताब से हमारे प्यारे पैगम्बर मुहम्मद को बेइज्जत करने की कोशिश की है!'
इल्म-उद-दीन को राजपाल और उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तक के विवाद के बारे में कुछ भी नहीं पता था और उसने जानना भी नहीं चाहा। उसने एक छुरा खरीदा और 6 सितंबर, 1929 को राजपाल की छुरा घोंपकर हत्या कर दी। इस तरह कट्टरपंथी इस्लाम काम करता है: ब्रेनवॉश किए गए लोगों, आसानी से प्रभावित होने वाले लोगों, खाली दिमाग लोगों के लिए आतंक की पटकथा लिखकर।
इल्म-उद-दीन के खिलाफ मुकदमा चला। पाकिस्तान के आध्यात्मिक संस्थापक कवि इकबाल ने पाकिस्तान के जनक जिन्ना से इल्म-उद-दीन की ओर से मुकदमा लड़ने का अनुरोध किया, जिसे जिन्ना ने माना। 19 वर्षीय इल्म-उद-दीन ने अपने कृत्य के लिए कोई पछतावा नहीं दिखाया, इसके बजाय अपने अपराध पर गर्व किया। उसे मृत्यु दंड मिला और 31 अक्टूबर, 1929 को उसे फांसी दे दी गई।
इकबाल उसके जनाजे को कंधा देने वालों में शामिल थे। उस समय इकबाल ने पंजाबी में कहा था, असी वेखडे रेह गए, ऐ तरखाणा दा मुंडा बाजी ले गया (हमारे जैसे शिक्षित लोग कुछ नहीं कर सके जबकि इस बढ़ई के बेटे ने उपलब्धि हासिल कर ली)। यह हैं पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि, वास्तव में उर्दू के सबसे महान कवियों में से एक।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इल्म-उद-दीन को पाकिस्तान में एक महान इस्लामी नायक, एक पवित्र योद्धा, एक गाजी, एक शहीद आदि के रूप में महिमामंडित किया जाता है। उसके 'महान काम' की याद में एक मस्जिद है। फरवरी 2013 में, लाहौर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने 84 साल पुराने इल्म-उद-दीन मामले को फिर से खोलने की मांग वाली याचिका को मंजूर करने या नहीं करने पर दलीलें सुनीं। उसी वर्ष अक्टूबर में, मियां साहिब कब्रिस्तान में गाजी इल्म-उद-दीन शहीद के 84वें वार्षिक उर्स में हजारों भक्तों ने गाजी इल्म-उद-दीन शहीद को श्रद्धांजलि दी।
द न्यूज ने 13 अक्टूबर, 2013 को अपनी रिपोर्ट में बताया था, "विद्वानों ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए वाशिंगटन के दबाव में ईशनिन्दा कानूनों में संशोधन करने के लिए रची जा रही सभी साजिशों का विरोध करने की कसम खाई। उन्होंने कहा कि इस्लाम के नाम पर बनाए गए देश में किसी भी ईशनिन्दा करने वाले को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका के गुलाम शासकों ने ईशनिंदा करने वालों को बचाने की कोशिश की तो गाजी इल्म दीन शहीद की तरह पवित्र पैगंबर के अनगिनत चाहने वाले उभर कर सामने आएंगे।" कहानी का नैतिक मूल्य : अनैतिकता, अनैतिकता को जन्म देती है। इकबाल और जिन्ना के इस्लामी आतंक के समर्थकों और प्रशंसकों द्वारा स्थापित पाकिस्तान का एक आतंकवादी राज्य में विकास कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है।
(यह सामग्री इंडियानैरेटिवडॉटकाम के साथ एक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत की गई है)