दसाल्ट सीईओ ने राफेल सौदे में घोटाले से किया इंकार, रिलायंस से करार पर दिया बड़ा बयान
राजग सरकार ने 36 राफेल दोहरे इंजन वाले लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए सितंबर 2016 में फ्रांस सरकार के साथ 7. 87 अरब यूरो (करीब 59,000 करोड़ रूपये) के एक सौदे पर हस्ताक्षर किए थे।
बेंगलुरू: दसाल्ट एविएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एरिक ट्रेपियर ने बुधवार को कहा कि भारत और फ्रांस के बीच हुए 36 राफेल लड़ाकू विमान में 'कोई घोटाला' नहीं हुआ है और कहा कि अगर भारत को और ज्यादा लड़ाकू विमान चाहिए तो उनकी कंपनी को विमान आपूर्ति करने में खुशी होगी। ट्रेपियर ने एयरो इंडिया एयरशो से इतर पत्रकारों से कहा, "राफेल के संबंध में कोई घोटाला नहीं हुआ है। हमें 36 लड़ाकू विमानों का आग्रह किया गया था और हम 36 विमानों की आपूर्ति करने वाले हैं। अगर भारत सरकार और लड़ाकू विमान चाहती है तो हमें आपूर्ति करने में खुशी होगी।"
सौदे के लिए सूचना के लिए अनुरोध (आरएफआई) या शुरूआती निविदा छह अप्रैल 2018 को जारी की गई थी। यह लड़ाकू विमानों की पहली बड़ी खरीद पहल थी। लगभग छह साल पहले 126 ‘मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट’ (एमएमआरसीए) खरीदने की प्रक्रिया सरकार द्वारा रद्द करने के बाद यह कदम उठाया गया था। राजग सरकार ने 36 राफेल दोहरे इंजन वाले लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए सितंबर 2016 में फ्रांस सरकार के साथ 7. 87 अरब यूरो (करीब 59,000 करोड़ रूपये) के एक सौदे पर हस्ताक्षर किए थे।
दसाल्ट एविऐशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एरिक ट्रैप्पियर ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘राफेल सौदे में कोई घोटाला नहीं हुआ है। हम 36 विमानों की आपूर्ति करने जा रहे हैं। यदि भारत सरकार और अधिक विमान चाहती है तो हमें इसकी आपूर्ति करने में खुशी होगी।’’ उन्होंने कहा कि 110 विमानों के लिए एक आरएफआई भी है और हम इस दौड़ में हैं क्योंकि हमें लगता है कि राफेल सर्वश्रेष्ठ विमान है तथा भारत में हमारा फुटप्रिंट है। इसलिए भारत में हम आश्वस्त हैं।’’
यह पूछे जाने पर कि दसाल्ट ने रक्षा उपकरण बनाने में रिलायंस के पास अनुभव के अभाव के बावजूद उस कंपनी के साथ साझेदारी क्यों की, ट्रैप्पियर ने कहा, ‘‘हां। लेकिन मेरे पास अनुभव है। मैं यह जानकारी और अनुभव भारतीय टीम को हस्तांतरित कर रहा हूं।’’ एक नयी कंपनी दसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीएआरएल) द्वारा भारतीय टीम नियुक्त की गई है। वे भारत और कंपनी के लिए अच्छे हैं। इसलिए समस्या कहां है?
गौरतलब है कि इस सौदे को लेकर एक राजनीतिक विवाद छिड़ गया है। दरअसल, कांग्रेस लगातार नरेंद्र मोदी नीत सरकार पर आरोप लगा रही है कि वह राफेल विमानों की अधिक कीमत वाले सौदे के जरिए उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस को फायदा पहुंचा रही है। विपक्ष ने 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर अपने प्रचार अभियान में भी इस मुद्दे को शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि भारत ने 2016 में राफेल के लिए फ्रांस के साथ एक सौदे पर हस्ताक्षर किया था।
रिलायंस के पास वित्तीय संकट होने के बावजूद उसके साथ साझेदारी पर दसाल्ट के आगे बढने के बारे में पूछे जाने पर ट्रैप्पियर ने कहा, ‘‘उनके अपने खुद के विषय हैं, लेकिन हम साथ मिल कर काम कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि उन्होंने रिलायंस को इसलिए चुना क्योंकि वह चाहते थे कि भारत में फ्रांसीसी विमान के पुर्जे बनें।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने यहां भारत में सुविधाएं तैयार करने के लिए अपना धन निवेश किया और मैंने साझेदार पाए।’’ राजग सरकार के दौरान संप्रग शासन की तुलना में राफेल की कीमतों में काफी वृद्धि होने के बारे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोप पर ट्रैप्पियर ने कहा कि दोनों देशों ने मूल कीमत में करीब नौ फीसदी की कमी की है।