मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय से कहा कि मराठा समुदाय को आरक्षण मुहैया करने वाले नए कानून के तहत 23 जनवरी तक अपने विभागों में वह कोई नियुक्ति नहीं करेगी। दरअसल, इसी तारीख को अदालत ‘मराठा कोटा’ के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
उच्च न्यायालय ने नौकरियों में भर्तियों के लिए विज्ञापन निकालने को लेकर इस महीने की शुरूआत में राज्य सरकार को फटकार लगाई थी क्योंकि इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं लंबित हैं। सरकारी वकील वी ए थोराट ने बुधवार को मुख्य न्यायाधीश एनएच पाटिल और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की खंडपीठ को भरोसा दिलाया कि राज्य सरकार सुनवाई की अगली तारीख (23 जनवरी तक) तक कोई नियुक्ति नहीं करेगी।
अदालत ने 10 दिसंबर को सरकार से पूछा था कि क्या वह राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट सार्वजनिक करने को इच्छुक है। गौरतलब है कि इसी आयोग की सिफारिश पर सरकार ने मराठा कोटा के लिए कानून बनाया। थोराट और राज्य सरकार के महाधिवक्ता आशुतोष कुम्भकोणी ने कहा कि सरकार इस रिपोर्ट की प्रति अदालत को सौंपने के लिए कर्तव्यबद्ध है लेकिन याचिकाएं दायर करने वाले वकीलों को यह रिपोर्ट देने और इसे सार्वजनिक करने से उसे कुछ ऐतराज है।
कुम्भकोणी ने कहा, ‘‘इसका कुछ हिस्सा सिफारिशों से संबंधित नहीं है बल्कि यह मराठा समुदाय के इतिहास से जुड़ा हुआ है...हमें लगता है कि यह सामाजिक अशांति पैदा कर सकता है।’’ इस पर पीठ ने सरकार से वकीलों को यह हिस्सा हटा कर देने पर विचार करने का सुझाव दिया।
अदालत ने सरकार से कहा, ‘‘रिपोर्ट की एक प्रति हमें (अदालत को) हफ्ते भर के अंदर सौंपिए। तब हम फैसला करेंगे कि रिपोर्ट का काट छांट किया हुआ यह प्रारूप आरक्षण को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर करने वाले वकीलों को दिया जा सकता है या नहीं।’’ पीठ ने मराठा कोटा मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
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