बिहार: यहां चमगादड़ों को माना जाता है का रक्षक लेकिन निपाह को लेकर ऊहापोह!
बिहार सरकार और केंद्र सरकार ने एडवायजरी जारी कर लोगों को चमगादड़ों और सुअरों को निपाह के वायरस का वाहक मानते हुए उनसे दूर रहने की सलाह दी हैं तथा ऐसे क्षेत्रों से दूर रहने की अपील की गई है, जहां ये अत्यधिक पाए जाते हैं।
पटना: भारत के केरल राज्य में 'निपाह वायरस' के लिए लोग जहां चमगादड़ों को दोषी ठहरा रहे हैं, वहीं बिहार के वैशाली जिले में एक ऐसा भी गांव है, जहां आज भी चमगादड़ों को गांव का रक्षक मानकर उसकी पूजा की जाती है। मगर केरल में फैली निपाह से यहां के लोग ऊहापोह में हैं। केरल से आए समाचारों के बाद इस गांव के लोगों को भी निपाह वायरस का डर जरूर सता रहा है। इधर, राज्य सरकार ने भी इस वायरस को लेकर एडवायजरी कर लोगों को कई चीजों से बचने की सलाह दी है।
बिहार सरकार और केंद्र सरकार ने एडवायजरी जारी कर लोगों को चमगादड़ों और सुअरों को निपाह के वायरस का वाहक मानते हुए उनसे दूर रहने की सलाह दी हैं तथा ऐसे क्षेत्रों से दूर रहने की अपील की गई है, जहां ये अत्यधिक पाए जाते हैं। दूसरी तरफ वैशाली के राजापाकर प्रखंड के सरसई गांव में लोग इस स्तनधारी जीव चमगादड़ों को न केवल गांव का रक्षक, बल्कि समृद्धि का प्रतीक मानकर पूजा करते हैं। इस गांव और इसके आसपास के क्षेत्रों में करीब 50 हजार से ज्यादा चमगादड़ों का वास है। ग्रामीणों का तो दावा है कि इन चमगादड़ों में कई का वजन पांच-पांच किलोग्राम तक है।
सरसई के सरपंच और बिहार सरपंच संघ के अध्यक्ष अमोद कुमार निराला ने कहा कि इस गांव के आसपास के क्षेत्रों में कुछ दशक पूर्व प्लेग और हैजा जैसी बीमारी महामारी का रूप ले ली थी, लेकिन इस गांव में यह बीमारी नहीं पहुंच सकी थी। तब यह माना गया था कि इन चमगादड़ों के वास के कारण ही इस गांव में बीमारियां नहीं पहुंच पाई। इसके बाद ये चमगादड़ यहां के ग्रामीणों के लिए भाग्यशाली हो गई।
निराला कहते हैं, "इन चमगादड़ों को मारना या नुकसान पहुंचाना गांव के लोगों के लिए पूरी तरह निषेध है। हम लोगों के पूर्वज भी यही कहा करते थे कि इनको नुकसान पहुंचाना गांव के लिए शुभ नहीं होगा। गांव के लोग भी इनकी सुविधा का ख्याल रखते हैं।"
निराला दावा करते हैं कि ये चमगादड़ यहां 15 वीं शताब्दी में तिरहुत के एक राजा शिव सिंह सिंह द्वारा निर्मित तालाब के आसपास के सेमर, पीपल आदि पेड़ों पर निवास करते हैं। उन्होंने बताया कि ग्रामीण चमगादड़ों के लिए तालाब सूखने की स्थिति में न केवल उनमें जल का प्रबंध करते हैं, बल्कि आसपास के फलदार वृक्षों से फल तोड़कर उनके खाने का भी प्रबंध करते हैं।
इस बीच, मीडिया के माध्यम से मिली जानकारी के बाद सरपंच अमोद निराला घूम-घूमकर गांव में बस्तियों में लोगों को निपाह वायरस की जानकारी दे रहे हैं। लोगों से बच्चों पर ध्यान देने की अपील करते हुए उन्हें जमीन पर गिरा फल नहीं खाने की सलाह दे रहे हैं। वे लोगों से ताड़ी पीने से भी लोगों को मना करते नजर आ रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि ये चमगादड़ सैकड़ों सालों से इस गांव में पेड़ों पर रहते हैं। मान्यता है कि इन चमगादड़ों की वजह से ही इस गांव में कभी कोई गंभीर बीमारी नहीं फैली।
ग्रामीण इंद्रजीत नारायण सिंह तो यहां तक कहते हैं कि गांव में किसी अनजान के प्रवेश के बाद ये चमगादड़ ग्रामीणों को सचेत भी करते हैं। वे कहते हैं कि किसी अनजान के प्रवेश के बाद ये चमगादड़ शोर मचाना शुरू कर देते हैं, जबकि गांव के लोगों के वृक्ष के पास जाने के बाद वे शांत रहते हैं।
बहरहाल, वर्षो पुरानी परंपरा और हाल के दिनों में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए एडवायजरी के बाद यहां के लोग चमगादड़ को लेकर ऊहापोह की स्थिति में हैं। ग्रामीण यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि जो चमगादड़ उनके आस्था का प्रतीक हैं, आज वही उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कैसे हो सकते हैं? इधर, स्वास्थ्य विभाग ने अपने एडवायजरी में निपाह वायरस से बचाव के संबंध में बताया है।