नहीं हो रहा पर्यावरण मानकों का पालन, NGT ने राज्यों के मुख्य सचिवों को किया तलब
देश का कोई भी राज्य, स्थानीय निकायों के स्तर पर ठोस कचरा, प्लास्टिक कचरा, मेडिकल कचरा और निर्माणकार्यों के कचरे के निस्तारण से संबंधित कचरा प्रबंधन नियम 2016 का पालन नहीं कर पा रहा है।
नई दिल्ली: देश का कोई भी राज्य, स्थानीय निकायों के स्तर पर ठोस कचरा, प्लास्टिक कचरा, मेडिकल कचरा और निर्माणकार्यों के कचरे के निस्तारण से संबंधित कचरा प्रबंधन नियम 2016 का पालन नहीं कर पा रहा है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने देश के सभी राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन के उपायों की समीक्षा के आधार पर यह चौंकाने वाली टिप्पणी करते हुए सभी राज्यों से छह माह के भीतर स्थिति में सुधार लाने को कहा है।
NGT ने हाल ही में पर्यावरण मानकों खासकर कचरा प्रबंधन के उपायों का पूरे देश में सख्ती से पालन सुनिश्चित कराने की समीक्षा के लिए पहली बार सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को दिल्ली तलब कर रिपोर्ट मांगी थी। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की कामयाबी में सर्वाधिक बाधक बन रहे कचरा जनित प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये NGT द्वारा की गयी यह अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई थी। इसमें मार्च से मई के दौरान, अलग अलग तारीख पर पेश हुये 27 राज्यों के मुख्य सचिव और सात संघ शासित क्षेत्रों के प्रशासकों ने जो रिपोर्ट पेश की है, उसे NGT ने निराशाजनक बताया है।
राज्यों की रिपोर्ट के आधार पर NGT ने कहा है कि लगभग सभी शहरों और कस्बों में कचरा निस्तारण के व्यवस्थित उपाय नहीं किये जाने के कारण स्थानीय लोगों और पर्यावरण के लिये खतरा लगातार बढ़ रहा है। स्थानीय प्रशासन द्वारा बेकाबू होती स्थिति को नियंत्रित करने के लिये कानूनी उपायों को अमल में नहीं लाया जा रहा है। इतना ही नहीं स्वच्छ भारत अभियान के तहत किये जा रहे कामों को भी कचरा प्रबंधन नियमों के साथ तालमेल क़ायम करके पूरा नहीं किया जा रहा है।
इसके अनुसार कोई भी राज्य अभी तक प्रदूषित हो चुकी देश की 351 नदियों के पानी को कम से कम स्नान के योग्य बनाने की दिशा में समयबद्ध कार्ययोजना भी तय नहीं कर पाया है। जिन शहरों में सीवर ट्रीटमेंट संयत्र लग चुके हैं, उनमें नये मानकों का पालन नहीं हो रहा है। सीवर का गैरशोधित पानी या तो जलाशयों में अभी भी बहाया जा रहा है या भूक्षेत्र में बिखरा है।
NGT के मुताबिक, 102 शहरों की हवा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की कार्ययोजना भी जमीन पर कहीं नहीं दिख रही है। इसकी वजह, तमाम शहरों में राज्यों के स्तर पर निगरानी तंत्र का व्यापक तौर पर निष्प्रभावी होना है। देश के सर्वाधिक प्रदूषित 100 औद्योगिक क्लस्टर में पर्यावरण की गुणवत्ता बहाल करने के लिये तैयार कार्ययोजना को लागू करने में लेटलतीफ़ी की बात सामने आयी है।
मुख्य सचिवों की रिपोर्ट से साफ़ है कि उद्योग एवं मानव जनित अपशिष्ट के निस्तारण एवं शोधन के नियमों का पालन सुनिश्चित करने में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण समितियां भी अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करने में नाकाम रहीं। इस वजह से न तो पर्यावरण क्षतिपूर्ति की वसूली हो सकी ना ही नियमों का उल्लंघन कर रहे उद्योगों के खिलाफ अदालती कार्रवाई शुरु हो सकी। NGT ने राज्यों में बेतहाशा बालू खनन जारी रहने के कारण पर्यावरण, खासकर नदियों को हो रहे नुकसान पर भी चिंता जतायी है।
रिपोर्ट से पता चला है कि किसी भी राज्य ने इन गतिविधियों के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान का आंकलन नहीं किया। नतीजतन, प्रदूषण फैलाने वालों की कारगुजारियां खुले आम जारी हैं। राज्य प्रदूषण बोर्डों ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि जलाशय दूषित हो गये हैं, हवा प्रदूषित हो गयी है, भूजल स्तर गिर रहा है और प्रदूषण का असर समस्त जीव जगत की सेहत पर पड़ रहा है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुये NGT ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को ठोस कचरा, प्लास्टिक एवं मेडिकल कचरा प्रबंधन नियमों के अब तक अमल में नहीं लाये जा रहे प्रावधानों का छह सप्ताह के भीतर पालन सुनिश्चित करने को कहा है। साथ ही प्रत्येक मुख्य सचिव को इसके पालन की तिमाही के आधार पर NGT में रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
इसके अलावा प्रत्येक राज्य के तीन शहर, तीन कस्बे और हर जिले के तीन गांव का चयन कर इन्हें राज्य की वेबसाइट पर आदर्श शहर, आदर्श कस्बा और आदर्श ग्राम के रूप में अधिसूचित करने को कहा गया है। इनमे अगले छह महीने के भीतर कचरा प्रबंधन नियमों का पालन सुनिश्चित कर समूचे राज्य में एक साल के अंदर सभी पर्यावरण नियमों का शत प्रतिशत पालन करने का निर्देश भी दिया गया है।