‘रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को लेकर नेहरू का बयान आज भी सही’
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकारों तक का केन्द्रीय बैंक के साथ नीतिगत मुद्दों पर मतभेद रहा है। इसके चलते कई मौकों पर रिजर्व बैंक गवर्नर को इस्तीफा तक देना पड़ा।
नयी दिल्ली: सरकार के रिजर्व बैंक की स्वायत्तता में हस्तक्षेप करने को लेकर कांग्रेस की आलोचना झेल रही सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने सोमवार को कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी उस समय कहा था कि केन्द्रीय बैंक को स्वायत्तता मिली हुई है लेकिन उसे केन्द्र सरकार का निर्देश भी मानना होगा। नेहरू के तब कहे गये ये शब्द आज भी लागू होते हैं। सरकार में शीर्ष पद पर काम करने वाले इस अधिकारी ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर और भी कई ऐसे उदाहरण दिये हैं जब केन्द्र में रही सरकारों का रिजर्व बैंक के साथ मतभेद रहा।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकारों तक का केन्द्रीय बैंक के साथ नीतिगत मुद्दों पर मतभेद रहा है। इसके चलते कई मौकों पर रिजर्व बैंक गवर्नर को इस्तीफा तक देना पड़ा। वर्ष 1957 में तत्कालीन रिजर्व बैंक गवर्नर बेनेगल रामा राऊ ने इस्तीफा दे दिया था। एक प्रस्ताव पर रिजर्व बैंक गवर्नर के साथ उभरे मतभेद के मामले में उस समय के प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा अपने वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी का समर्थन करने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। मौजूदा नरेन्द्र मोदी सरकार के रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल के साथ उभरे मतभेद के बारे में पूछे जाने पर सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘‘नेहरू ने जो कहा था वह आज भी सत्य है।’’
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार की आलोचना करते हुये कहा है कि वह अपनी धोंसपट्टी की नीतियों पर चलते एक एक कर सरकारी संस्थानों को बरबाद कर रही है। रिजर्व बैंक के एक डिप्टी गवर्नर द्वारा केन्द्रीय बैंक की स्वायत्तता का मुद्दा उठाये जाने के बाद मोदी सरकार और रिजर्व बैंक के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गये। डिप्टी गवर्नर ने कहा कि जो सरकारें केन्द्रीय बैंक की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करती हैं उन्हें देर सबेर वित्तीय बाजारों के रोष का सामना करना पड़ता है।
सरकार और रिजर्व बैंक के बीच जारी मौजूदा खींचतान को कई लोगों ने अप्रत्याशित बताया है जबकि सरकार की शीर्ष अधिकारी इस मामले में पहले की सरकारों के तमाम उदाहरण देते हैं। उन्होंने रिजर्व बैंक गवर्नर एन सी सेनगुप्ता और के आर पुरी का उदहारण देते हुये कहा कि सरकार के हस्तक्षेप के चलते उनके कार्यकाल को पहले ही समाप्त कर दिया गया।
अधिकारी ने सेनगुप्ता के मामले में कहा कि उन्हें मारूति उद्योग की परियोजना के लिये बैंक कर्ज की सीमा को लेकर उपजे मतभेद की वजह से जाना पड़ा। मारुति उद्योग तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के दिमाग की उपज थी।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 1982 से 1985 के दौरान रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे थे। उन्हें भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने योजना आयोग में भेज दिया क्योंकि वह दूसरे व्यक्ति को रिजर्व बैंक गवर्नर के रूप में देखना चाहते थे।
अधिकारी ने रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे डी. सुब्बाराव के कार्यकाल की भी याद दिलाई। वह 2008 से 2013 के बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे। उनके और तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के बीच के तनावपूर्ण रिश्तों के बारे में सभी को पता है।