मुंबई हादसा: तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई...
चार अफवाहों के बीच मुंबई के एलफिंस्टन ब्रिज की सीढि़यों में फंस कर रह गई 22 लोगों की धड़कनें। इस देश ने अपने 22 से ज्यादा नागरिकों को एक ऐसे हादसे में खो दिया है जिसने हमारी राजनीति, हमारे विज्ञान और हमारी संवेदनशीलता तीनों पर सवाल उठा दिया है।
चार अफवाहों के बीच मुंबई के एलफिंस्टन ब्रिज की सीढि़यों में फंस कर रह गई 22 लोगों की धड़कनें। इस देश ने अपने 22 से ज्यादा नागरिकों को एक ऐसे हादसे में खो दिया है जिसने हमारी राजनीति, हमारे विज्ञान और हमारी संवेदनशीलता तीनों पर सवाल उठा दिया है। एक बार फिर मुंबई रो रही है...एक बार मुंबई दर्द में डूबी हुई है...मुंबई के परेल-एलफिंस्टन रेलवे ब्रिज पर भगदड़ की वजह से 22 लोगों की मौत हो गयी और करीब 39 लोग हादसे में घायल हुए हैं. हादसे पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रेल मंत्री ने दुख जताया है लेकिन इस बात की गारंटी किसी ने नहीं दी है...कि अगली बार ऐसा हादसा नहीं होगा। इस रिपोर्ट को देखिए और समझिए कि क्या होता है जब परिवार के बीच से कोई अचानक से बिछड़ जाता है।
हिलोनी
24 साल की हिलोनी मां-बाप के सपनों को पूरा कर रही थी लेकिन रेलवे की एक भूल ने सारे सपनों को पाताल में पहुंचा दिया. मामा बताते हुए फफक पड़ते हैं कि अभी तो भांजी ने जिंदगी की शुरुआत ही की थी और अंत की खबर आ गई. हिलोनी एक्सिस बैंक में चार्टेड अकाउंटेट थी। हिलोनी के आगे अच्छा करियर खड़ा था। एक्सिस बैंक के काम का लेखा-जोखा किया करती थी लेकिन एलफिंस्टन रेलवे ब्रिज पर अफवाह ऐसी फैली कि उसमें फंस गई सलोनी की सांसें. रोज की तरह एलफिंस्टन स्टेशन से हिलोनी को ट्रेन बदलनी थी लेकिन ट्रेन बदल पाती उससे पहले ही रेलवे की लापरवाही ने ख्वाहिशों को खत्म कर दिया।
प्रियंका पालस्कर
एलफिंस्टन स्टेशन में हुई इस घटना में सिर्फ चेहरे बदलते हैं चीत्कार नहीं। 24 साल की प्रियंका पालस्कर की सारी उड़ान एलफिंस्टन स्टेशन के प्लेटफॉर्म की सीढ़ियों पर समाप्त हो गई. उसके फेसबुक पर स्टेटस को देखिए तो समझ में आएगा कि उसकी इच्छाएं क्या थीं। उसे ज़िंदगी से लड़ना और जीतना अच्छा लगता था। उम्र की ढलान पर पिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए बेटी तैयार हो रही थी लेकिन रेलवे की लापरवाही ने पिता को बहुत कमजोर कर दिया। प्रियंका कुर्ला से परेल लोकल से आती थी और रोज़ एलफिंस्टन के इसी ब्रिज से गुज़रती थी। प्रियंका सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी और उसकी ख्वाहिश नाम कमाने की थी लेकिन सारी ख्वाहिशें जानलेवा सिस्टम और सरकारी लापरवाही के आगे हार गई।
श्रद्धा वर्पे
जिस उम्र में लड़कियां आज के दौर में सोशल मीडिया पर खो जाती हैं उस दौर में श्रद्धा अपने अरमानों की कहानियां लिख रही थीं। श्रद्धा परेल में कामगार संघ में अपने पिता के साथ काम करती थी। इस पुल से वो रोज़ की तरह गुजर रही थी। पिता पुल के पहले रुक गए लेकिन श्रद्धा इसी पुल में फंस गई। पुल पर बढ़ती भीड़ को देखकर श्रद्धा ने कहा था ''पापा आप आगे जाओ, मैं तब आऊंगी जब पुल पर भीड़ कुछ कम हो जाएगी।'' पापा आगे बढ़ गए और हादसे से पहले नीचे उतर गए लेकिन भीड़ के पैरों तले श्रद्धा का दम घुट गया। श्रद्धा के पिता चल तो सकते हैं लेकिन दौड़ नहीं सकते। वो अपने पिता के लिए सहारा भी थी।
थेरेसा फर्नांडिस
चालीस साल की थेरेसा फर्नांडिस अपनी नौ साल के बच्चे की जिंदगी संवारने के लिए दफ्तर निकली थी लेकिन भगदड़ में उन्होंने भी दम तोड़ दिया। 5 लाख का मुआवजा या 10 लाख का मुआवाज थेरेसा के परिवार वालों को नहीं चाहिए, बस ये गारंटी चाहिए कि आगे से रेलवे के पुल को पार करते वक्त किसी और थेरेसा की मौत न हो।
थेरेसा फर्नांडिस का सिर्फ नौ साल का बच्चा है। परिवार के लोग पूछते हैं कि जापान से बुलेट तो ला रही है सरकार पर क्या मां भी ला सकती है।
सचिन कांबले
सचिन नाम है लेकिन जिंदगी की लंबी पारी नहीं खेल पाए। दोस्तों के साथ लोकल में सफर करते हुए एलफिन्स्टन रेलवे स्टेशन पहुंचे थे, यहां से दूसरी ट्रेन पकड़नी थी लेकिन उससे पहले ही सीढि़यों पर हादसा हो गया। दोस्तों ने सचिन कांबले का आखिरी वीडियो दिखाया जिसमें वो चलती ट्रेन में दशहरा की पूजा कर रहे थे। बड़े जतन से माता रानी का नाम जप रहे थे लेकिन ट्रेन से उतरे तो मौत सीढ़ियों पर इंतजार कर रही थी।