नई दिल्ली: प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार को आर्थिक वृद्धि की ‘सनक’ से बाहर निकलने और विकास क्या है इसको लेकर व्यापक नजरिया अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार कई क्षेत्रों में अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है और उन्हें कॉरपोरेट या राज्य सरकारों के भरोसे छोड़ दे रही है।
द्रेज ने पीटीआई-भाषा को दिए एक इंटरव्यू में मोदी सरकार की नीतियों का निम्न वर्ग के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव, गरीब और अमीर के बीच बढ़ते फासले को लेकर उनकी चिंता और आधार कार्ड आधारित सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर सवाल किए गए। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को आर्थिक वृद्धि की सनक से बाहर निकलना चाहिए और विकास क्या है इसको लेकर व्यापक नजरिया अपनाना चाहिए। आर्थिक वृद्धि जीवन स्तर में सुधार के तौर पर विकास में निश्चित रूप से योगदान दे सकती है पर यह अपने आप में दूरगामी नहीं हो सकती है।’’
बेल्जियम में पैदा हुए और अब भारतीय नागरिक द्रेंज ने कहा कि विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, सामाजिक सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण, सार्वजनिक परिवहन आदि क्षेत्रों में विस्तृत कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘मोदी सरकार इनमें से कई जिम्मेदारियों को पीछे छोड़ रही है और उन्हें किसी न किसी रूप में औद्योगिक घरानों या फिर राज्य सरकारों के भरोसे छोड़ दे रही है।’’
द्रेंज ने कहा कि विकास की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण शुरुआत गुणवत्ता वाली शिक्षा है। इसे हाल ही में दुनियाभर में खुद भारत में विकास कार्यों से मिले अनुभव में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘वैश्विक स्तरीय शिक्षा भारत के लिये काफी महत्वपूर्ण है , भारत में व्याप्त सामाजिक विषमता को देखते हुये यह काफी अहम है। पांच साल निकल चुके हैं लेकिन प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में भी कोई बड़ी पहल नहीं हो सकी है।’’
द्रेंज ने कहा कि पिछले पांच साल वंचित तबके के लिये खासतौर से बेहतर नहीं रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि नोटबंदी से वित्तीय रूप से कमजोर वर्ग को झटका लगा है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बावजूद अर्थव्यवस्था किसी तरह से 7.5 प्रतिशत वृद्धि रूझान के आसपास वृद्धि हासिल करने में सफल रही है। पिछले 15 साल अर्थव्यवस्था इसी स्तर के आसपास वृद्धि हासिल करती रही है। इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में मेहनताना दरें वास्तव में कमोबेश स्थिर रही हैं।
कई पुस्तकों के लेखक रहे द्रेंज ने कहा कि भारत में महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी दुनिया में सबसे कम में एक रही है। उन्होंने कहा कि यही दो प्रमुख संकेत हैं जो बताते हैं कि तीव्र आर्थिक वृद्धि पर्याप्त रोजगार के अवसर और लोगों के लिए आय के अवसर पैदा करने में असफल रही है।
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