श्रीनगर: विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने गुरुवार को समुदाय के जम्मू एवं कश्मीर में पुनर्वास की व्यवस्था होने तक बाहरी लोगों के लिए जमीन की ब्रिकी प्रतिबंधित करने की मांग की। विस्थापित कश्मीरी पंडितों के संगठन 'सुलह, वापसी और पुनर्वास' के अध्यक्ष सतीश अंबरदार ने एक बयान में कहा, ‘भारत सरकार ने मंगलवार, 27 अक्टूबर को जम्मू एवं कश्मीर के लिए भूमि कानून के संबंध में अधिसूचना जारी की। यह कानून जम्मू एवं कश्मीर में भारत के नागरिकों के लिए जमीन खरीदने का मार्ग प्रशस्त करेगा।’
‘कश्मीरी पंडित ठगा महसूस कर रहे हैं’
उन्होंने कहा, ‘कश्मीरी पंडित ठगा महसूस कर रहे हैं। गत 31 वर्षो से हम अपनी मातृभूमि में वापसी और पुनर्वास की राह देख रहे हैं। हमें बिना फिर से बसाए, भारत सरकार ने कश्मीर की जमीन को बिक्री के लिए उपलब्ध करा दिया। क्या यह अन्याय नहीं है? 1989 से, समुदाय घाटी में जातीय नरसंहार का सामना कर रहा है। राज्य और केंद्र में पूर्ववर्ती सरकारें घाटी में हमारे लोगों की सुरक्षा करने में विफल रही। हमारे समुदाय के साथ जो भी हुआ, सरकार मूकदर्शक बनकर देखती रही। कश्मीरी पंडितों को मारा गया, उनकी संपत्ति लूटी और जलाई गई, मंदिरों को नष्ट किया गया। कई महिलाओं का अपहरण किया गया, उनके साथ गैंगरेप किया गया और हत्या की गई।’
‘सरकार ने हमें पूरी तरह से धोखा दिया है’
सतीश अंबरदार ने कहा, ‘मजबूरी में किए गए पलायन ने हमें हमारी जड़ों से काट दिया। इससे हमारी अनूठी धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक पहचना प्रभावित हुई। हमें महसूस होता है कि सरकार ने हमें पूरी तरह से धोखा दिया है। अगर पिछली सरकारों ने हमें कश्मीर में हमारी जमीन पाने में मदद नहीं की तो इस सरकार ने यह सुनिश्चित कर दिया कि हम हमेशा निर्वासन में ही रहें। हम मांग करते हैं कि कश्मीर पंडितों के पुनर्वास तक किसी भी प्रकार की जमीन की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाए। हम मांग करते हैं कि जिन 419 परिवारों को घाटी में बसाने का गृह मंत्रालय ने वादा किया था, उन्हें बसाया जाए। हम सभी सांसदों से अपील करते हैं कि कृपया कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास में मदद करें।’
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