महबूबा मुफ्ती की मुश्किलें बढ़ीं! रोशनी जमीन घोटाले में आया नाम
महबूबा मुफ्ती के नाम भी रोशनी घोटाले में सामने आया है। आरोप हैं कि जम्मू में बना पीडीपी का ऑफिस सरकारी जमीन पर कब्जा कर के बनाया गया है।
श्रीनगर. जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती की मुश्किलें बढ़ गई है। अब महबूबा मुफ्ती के नाम भी रोशनी घोटाले में सामने आया है। आरोप हैं कि जम्मू में बना पीडीपी का ऑफिस सरकारी जमीन पर कब्जा कर के बनाया गया है। रोशनी घोटाले में पीडीपी के कई औऱ नेताओं के नाम भी है। इससे पहले जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कान्फ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला का भी नाम इस घोटाले में आ चुका है। अब्दुल्ला पर आरोप लगा है कि उन्होंने रोशनी एक्ट के जरिए जम्मू-कश्मीर में सरकारी जमीन को हड़प लिया है।
फारूख अब्दुल्ला पर 10 करोड़ रुपए की सरकारी जमीन हड़पने का आरोप है। फारूक अब्दुल्ला पर आरोप है कि उन्होंने जम्मू के सुजवां में 3 कनाल जमीन खरीदी थी और साथ में 7 कनाल सरकारी जमीन को भी अपने कब्जे में ले लिया। इस घोटाले में सिर्फ फारूख अब्दुल्ला ही नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर के कई और बड़े रसूखदार नेताओं के नाम भी सामने आए हैं।
फारूक अब्दुल्ला जब 2002 में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे तो वे एक एक्ट लेकर आए थे जिसमें कहा गया था कि 1990 तक जम्मू-कश्मीर में जिस नागरिक के पास जो जमीन है उस नागरिक का उस जमीन पर कब्जा बना रहेगा बशर्ते उस नागरिक को सरकार को कुछ फीस चुकानी होगी। फारूक अब्दुल्ला सरकार ने कहा था कि जमीन की फीस से सरकार को लगभग 25 हजार करोड़ रुपए की कमाई होगी और उस कमाई को जम्मू-कश्मीर में बिजली के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में खर्च किया जाएगा, बिजली की वजह से ही इस एक्ट को रोशनी एक्ट नाम दिया गया था।
लेकिन फारुक अब्दुल्ला के बाद जब मुफ्टी मोहम्मद सईद के नेतृत्व में पीडीपी की सरकार बनी तो उस एक्ट में बदलाव किया गया और कहा गया कि 1990 नहीं बल्कि 2003 तक के जमीन कब्जों को भी इस एक्ट में शामिल किया जाएगा। मुफ्ती मोहम्मद सईद के बाद जब गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने तो फिर स एक्ट में बदलाव हुआ और कहा गया कि 2007 तक की जमीन के कब्जे वाली जमीन एक्ट के तहत कवर होगी।
माना जाता है कि, क्योंकि हर सरकार इस एक्ट की अवधि बढ़ा रही थी तो ऐसे में राज्य के अंदर जमीनों को कब्जे करने का प्रचलन बढ़ गया और जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक रसूख वाले तथा पैसे वाले लोग जमीनों पर कब्जा करने लग पड़े थे। उल्टे सरकार ने इस एक्ट से जिस 25000 करोड़ रुपए की कमाई का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ था उसका आधा प्रतिशत से भी कम पैसा सरकारी खजाने में जमा हो सका। सरकार के पास 80 करोड़ रुपए भी जमा नहीं हो सके। अब कोर्ट ने इस एक्ट को असंवैधानिक करार दिया गया है।