नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Ex CM Mehbooba Mufti) को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की तरफ से दी गई नोटिस पर बुधवार को अंतरिम रोक लगा दी। यह जानकारी उनके वकील ने दी है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति हरीराम भंबानी की खंडपीठ के समक्ष यह मामला सुनवाई के लिए आया।
अदालत ने ईडी से कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए दबाव नहीं बनाएं और मामले में सुनवाई की अगली तारीख 19 मार्च तय की। मुफ्ती के वकील एस प्रसन्ना ने कहा कि पीडीपी नेता ने पेश होने के लिए ईडी की तरफ से जारी समन को 15 मार्च को चुनौती दी थी। उन्होंने कहा कि यह नहीं बताया गया कि किस जांच के लिए सिलसिले में उन्हें समन किया गया है और अदालत से समन को रद्द करने की गुजारिश की थी।
15 मार्च को तलब किया गया था
गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने धनशोधन के एक मामले में जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को पूछताछ के लिए 15 मार्च को तलब किया था। उन्हें राष्ट्रीय राजधानी में ईडी मुख्यालय में पेश होने के लिए नोटिस दिया गया था। जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद एक साल से ज्यादा की हिरासत के बाद पीडीपी नेता मुफ्ती (60) को पिछले साल रिहा किया गया था।
ईडी के समन के बाद महबूबा ने कहा था, कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ केंद्र सरकार की डराने-धमकाने की तरकीब काम नहीं आएगी। उन्होंने ईडी के नोटिस का उल्लेख किए बिना ट्विटर पर लिखा था, ‘‘केंद्र सरकार राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को डराने-धमकाने की तरकीब अपना रही है। वे नहीं चाहते कि हम उनकी दंडात्मक कार्रवाई और नीतियों पर सवाल करें। इस तरह का हथकंडा सफल नहीं होगा।’’
पीडीपी ने केंद्र पर लगाया था ‘बदले' की राजनीति का आरोप
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने 6 मार्च को कहा कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा इसके अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को समन भेजना केंद्र की ‘‘बदले की’’ राजनीति का हिस्सा है और कहा कि इस तरह के हथकंडों से संवैधानिक अधिकार बहाल करने के जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा कमजोर नहीं होगी।
पार्टी ने कहा, ‘‘ईडी का समन जम्मू-कश्मीर के लोगों और नेतृत्व के साथ जोर-जबर्दस्ती करने का एक और षड्यंत्र है ताकि क्षेत्र में असहमति को कुचला जा सके और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा और राज्य की पुनर्बहाली की मांग को दबाया जा सके।’’
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