देश में विकसित हो रही है स्टार्टअप संस्कृति, उज्जवल भविष्य का संकेत: प्रधानमंत्री मोदी
संस्कृत को लोकप्रिय बनाने की दिशा में हो रहे प्रयासों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भाषा अपने विचारों व साहित्य के माध्यम से ज्ञान-विज्ञान और राष्ट्र की एकता का भी पोषण करती है तथा उसे मजबूत करती है।
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि छोटे-छोटे शहरों में भी अब स्टार्टअप को लेकर युवाओं में रुझान पैदा हो रहा है और इसे लेकर देश में एक संस्कृति का विस्तार हो रहा है जिसे वह उज्जवल भविष्य के संकेत के रूप में देखते हैं। आकाशवाणी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘‘मन की बात’’ की 80वीं कड़ी के जरिए अपने विचार साझा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी भागीदारी के लिए खोलने के कदम को युवा पीढ़ी ने हाथों-हाथ लिया जिसका लाभ उठाने के लिए छात्र व नौजवान बढ़-चढ़ कर आगे आए हैं। उन्होंने भरोसा जताया कि आने वाले दिनों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे उपग्रहों की होगी, जिन पर देश के युवाओं ने काम किया होगा।
‘‘मन की बात’’ कार्यक्रम की इस कड़ी में प्रधानमंत्री ने भारत की समृद्ध आध्यात्मिक परंपरा और संस्कृत भाषा को लेकर जागरुकता बढ़ाने के प्रयासों सहित कुछ अन्य विषयों पर भी चर्चा की। उन्होंने दावा किया कि आज देश के युवा का मन बदल चुका है और वह घिसे-पिटे पुराने तौर-तरीकों से कुछ नया करना चाहता है। उन्होंने कहा कि आज का युवा बने-बनाए रास्तों पर चलना नहीं चाहता है बल्कि वह नए रास्ते बनाना चाहता है।
अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी भागीदारी के लिए खोलने के कदम का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘देखते ही देखते युवा पीढ़ी ने इस मौके को पकड़ लिया और इसका लाभ उठाने के लिए कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्रों में काम करने वाले नौजवान बढ़-चढ़ कर आगे आए हैं। मुझे पक्का भरोसा है कि आने वाले दिनों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे उपग्रहों की होगी, जिन पर हमारे युवाओं ने, हमारे छात्रों ने, हमारे कॉलेजों ने, हमारे विश्वविद्यालयों ने, प्रयोगशालाओं में काम करने वाले छात्रों ने काम किया होगा।’’
उन्होंने कहा कि इसी तरह आज जहां भी देखो और किसी भी परिवार में देखो, नौजवान अपनी पारिवारिक परम्पराओं से हटकर कहता है कि वह तो स्टार्टअप आरंभ करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘खतरा मोल लेने के लिए उसका मन उछल रहा है। आज छोटे-छोटे शहरों में भी स्टार्टअप संस्कृति का विस्तार हो रहा है और मैं उसमें उज्जवल भविष्य के संकेत देख रहा हूं।’’
प्रधानमंत्री ने खिलौना बाजार में संभावनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि अब देश के युवा इस क्षेत्र में भी आगे आ रहे हैं और नए-नए प्रयोग भी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया में खिलौनों का बाजार 6-7 लाख करोड़ रुपये का है और इसमें आज भारत का हिस्सा बहुत कम है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन खिलौने कैसे बनाना है? खिलौनों की विविधता क्या हो? खिलौनों में प्रौद्योगिकी क्या हो? बल मनोविज्ञान के अनुरूप खिलौने कैसे हों? आज हमारे देश का युवा उसकी ओर ध्यान केन्द्रित कर रहा है।’’
पीएम मोदी ने कहा कि आज का युवा अब ‘सर्वश्रेष्ठ’ की तरफ अपने आपको केन्द्रित कर रहा है और सर्वोत्तम करना चाहता है। उन्होंने कहा, ‘‘यह भी राष्ट्र की बहुत बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा।’’
प्रधानमंत्री ने देशवासियों को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं देते हुए इस्कॉन से जुड़ी अमेरिका में जन्मीं जदुरानी दासी से बात की और कहा कि दुनिया के लोग जब आज भारतीय अध्यात्म और दर्शन के बारे में इतना कुछ सोचते हैं तो अपनी इन महान परम्पराओं को आगे लेकर जाने की जिम्मेदारी देश की है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम अपने पर्व मनाएं, उसकी वैज्ञानिकता को समझें, उसके पीछे के अर्थ को समझें। इतना ही नहीं, हर पर्व में कोई न कोई सन्देश है, कोई-न-कोई संस्कार है। हमें इसे जानना भी है, जीना भी है और आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत के रूप में उसे आगे बढ़ाना भी है।’’
संस्कृत को लोकप्रिय बनाने की दिशा में हो रहे प्रयासों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भाषा अपने विचारों व साहित्य के माध्यम से ज्ञान-विज्ञान और राष्ट्र की एकता का भी पोषण करती है तथा उसे मजबूत करती है। इस दिशा में दुनिया के विभिन्न देशों में विभिन्न स्तरों पर हो रहे प्रयासों का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि हाल के दिनों में इस दिशा में जो प्रयास हुए हैं, उनसे संस्कृत को लेकर एक नई जागरूकता आई है।
उन्होंने कहा, ‘‘अब समय है कि इस दिशा में हम अपने प्रयास और बढाएं। हमारी विरासत को संजोना, उसे संभालना, नई पीढ़ी को देना, ये हम सब का कर्तव्य है और भावी पीढ़ियों का उस पर हक भी है। अब समय है कि इन कामों के लिए भी सबका प्रयास ज्यादा बढ़े।’’ प्रधानमंत्री ने देशवासियों को ‘‘विश्वकर्मा जयंती’’ की भी शुभकामनाएं दीं और कहा कि सृष्टि की जितनी भी बड़ी रचनाएं हैं और जो भी नए और बड़े काम हुए हैं, शास्त्रों में उनका श्रेय भगवान विश्वकर्मा को ही दिया गया है।