मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा ने नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने वाले एक विधेयक को गुरुवार को सर्वसम्मति से पारित कर दिया जो राज्य की राजनीति में खासतौर से चुनाव नजदीक होने के समय समुदाय की महत्ता को दर्शाता है। राज्य की करीब 13 करोड़ की आबादी में 33 प्रतिशत मराठा लोग हैं। राज्य के 18 मुख्यमंत्रियों में से 10 इसी समुदाय के हैं। साल 1960 में राज्य के गठन से लेकर अब तक मराठा समुदाय के मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल 30 साल से अधिक का रहा है।
पूर्व में रहे मराठा समुदाय के मुख्यमंत्रियों में पहले मुख्यमंत्री वाई बी चव्हाण, राकांपा सुप्रीमो शरद पवार, वसंतदादा पाटिल, शंकरराव चव्हाण और विलासराव देशमुख जैसे कद्दावर नेता शामिल हैं। मराठा मतदाता महाराष्ट्र में 288 विधानसभा क्षेत्रों में से करीब 200 पर चुनाव नतीजों पर असर डाल सकते हैं। हालांकि, आरक्षण मांग रहे मराठा संगठनों का हमेशा कहना है कि उसका प्रभाव समुदाय के एक छोटे से वर्ग तक सीमित हैं।
आरक्षण की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों का कहना है कि मुख्यत: खेती पर निर्भर मराठा आबादी का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक और आर्थिक दोनों रूप से पिछड़ा है। विधानसभा में विधेयक को गुरुवार को सर्वसम्मति से पारित करना पहली कोशिश नहीं है। साल 2014 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस-राकांपा सरकार ने भी एक अध्यादेश के जरिए समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण दिया था। साथ ही मुस्लिमों को पांच फीसदी आरक्षण दिया था।हालांकि, उस अध्यादेश पर बंबई उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी।
आरक्षण के लिए अभियान तब तीव्र हुआ जब जुलाई 2016 में अहमदनगर जिले के कोपर्डी गांव में 14 वर्षीय मराठा लड़की की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। इसके बाद राज्य में 2016 और 2017 में मराठा संगठनों ने 50 से अधिक मार्च निकाले। इस साल जुलाई में आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया। प्रदर्शनकारियों ने इस मांग को पूरा करने में देरी के लिए सरकार की आलोचना की। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने विधेयक के जल्द पारित होने के पीछे आगामी चुनावों को वजह बताया।
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