नई दिल्ली: भारत में अब बुलेट ट्रेन के बाद मैग्लेव ट्रेन चलाने की योजना पर काम किया जा रहा है। इसके लिए भारत हैवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BHEL) ने स्विस रैपिड एजी कंपनी के साथ एमओयू भी साइन कर लिया है। मैग्लेव ट्रेन के लिए प्रधानमंत्री की 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मानिर्भर भारत' के तहत समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इसके बाद दोनों कंपनियां मिलकर काम कर सकेंगी।
मैग्लेव ट्रेने कैसे काम करती हैं?
मैग्लेव ट्रेन पटरी पर दौड़ने के बजाय हवा में चलती है। यह ट्रेन बहुत जल्दी 600-800 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकती है। मैग्लेव सिस्टम में पहिए, एक्सल, ट्रांसमिशन और ओवरहेड वायर नहीं हैं। ट्रेन को मैग्नेटिक फील्ड की मदद से कंट्रोल किया जाता है। उसका पटरी से कोई सीधा संपर्क नहीं होता। इस वजह से इसमें ऊर्जा की बहुत कम खपत होती है।
मैग्लेव ट्रेने यहां चल सकती है?
सरकार की मैग्लेव ट्रेन को दिल्ली-चंडीगढ़, नागपुर-मुंबई, बैंग्लुरु-चेन्नई, हैदराबाद-चेन्नई के बीच चलाने की योजना है। हालांकि इसपर अभी बातचीत चल रही है। आने वाले समय में इसपर जल्द फैसला हो सकता है। स्विस रैपिड एजी कंपनी, 2008 एक स्विस कंपनी है जो दुनिया भर के देशों में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपने डिजाइन किए गए टिकाऊ, अल्ट्रा-स्पीड मैग्लेव रेल सिस्टम की योजना, निर्माण और संचालन करने में माहिर है।
Image Source : FileMaglev train scheme Delhi to chandigarh
बस इतना समय लगेगा
- दिल्ली-चंडीगढ़: 40 मिनट
- नागपुर-मुंबई: 130 मिनट
- बैंग्लुरु-चेन्नई: 55 मिनट
- हैदराबाद-चेन्नई: 110 मिनट
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जापान वर्तमान में एक नई मैग्लेव लाइन, चोउ शिंकानसेन के निर्माण पर काम कर रहा है। इसने माउंट फ़ूजी के पास एक परीक्षण ट्रैक पर 603 किमी प्रति घंटे की तेज रफ्तार रिकॉर्ड तोड़ दिया। इसके अलावा चीन के बीजिंग में लाइन एस 1 नामक एक नई मध्यम-से-कम गति मैग्लेव निर्माणाधीन है और जल्द ही इसका संचालन शुरू होने की उम्मीद है।भारत हैवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BHEL) नई तकनीकों का बीड़ा उठाता आ रहा है और पांच दशकों से भारतीय रेलवे के विकास में एक विश्वसनीय भागीदार है। यह भारतीय रेल को डीजल इंजनों, ईएमयू (इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट), और ड्राइव प्रदान करता है।
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