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निर्मल बाबा
वर्ष 1981 में निर्मलजीत सिंह नरूला ने निजी व्यवसाय आरंभ किया। एक के बाद एक कई व्यवसाय बदलने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने आप को संत घोषित कर स्वयं को निर्मल बाबा नाम दिया। उन्होंने निर्मल दरबार आरंभ किया इसके बाद से पुलिस में उनके खिलाफ अवैध रूप से धन ठगने की सूचना आने लगी। वह निर्मल दरबार में अपनी दिव्य दृष्टि से लोगों की समस्याएं हल करने लगे। यदि प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती तो वह लोगों से 10 फीसदी हिस्सा लेते।
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