नए कृषि कानून लागू नहीं हुए, तो हासिल नहीं होगा किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य: रमेश चंद
सरकार और यूनियनों के बीच इन कानूनों को लेकर 11 दौर की बातचीत हो चुकी है। आखिरी दौर की वार्ता 22 जनवरी को हुई थी। 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा के बाद बातचीत का सिलसिला टूट गया था। प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि इन कानूनों से राज्यों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद व्यवस्था समाप्त हो जाएगी।
नई दिल्ली. नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा है कि यदि तीनों नए कृषि कानूनों का कार्यान्वयन जल्द नहीं होता है, तो 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा। उन्होंने कहा कि किसान यूनियनों को सरकार की इन कानूनों पर धारा-दर-धारा के आधार पर विचार-विमर्श की पेशकश को स्वीकार करना चाहिए। नीति आयोग के सदस्य (कृषि) चंद ने पीटीआई-भाषा से साक्षात्कार में कहा कि जीन संवर्धित फसलों पर पूर्ण प्रतिबंध सही रवैया नहीं होगा। दिल्ली की सीमा पर किसान यूनियनें पिछले चार महीने से इन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रही हैं।
पढ़ें- Mann Ki Baat: पीएम मोदी ने देशवासियों से किया संवाद, बोले- कृषि में आधुनिक पद्धतियां समय की जरूरत
सरकार और यूनियनों के बीच इन कानूनों को लेकर 11 दौर की बातचीत हो चुकी है। आखिरी दौर की वार्ता 22 जनवरी को हुई थी। 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा के बाद बातचीत का सिलसिला टूट गया था। प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि इन कानूनों से राज्यों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद व्यवस्था समाप्त हो जाएगी।
पढ़ें- कानपुर के अस्पताल में आग लगी, कोई हताहत नहीं
चंद ने कहा, "इसका रास्ता कुछ देने और कुछ लेने से ही निकल सकता है। यदि आप अपनी मांग पर टिके रहते हैं, तो आगे कोई वांछित रास्ता निकलना मुश्किल होगा।"
नीति आयोग के सदस्य-कृषि ने कहा कि सरकार ने किसानों नेताओं को एक मजबूत विकल्प दिया है। यह इन कानूनों को डेढ़ साल तक रोकने का विकल्प है। चंद ने बताया कि सरकार किसानों के साथ इन कानूनों पर धारा-दर-धारा विचार करने को तैयार है। किसानों नेताओं को इस पेशकश पर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा, "ठंडे दिमाग और संतुलित तरीके से विचार के लिए काफी समय है। शुरुआती प्रक्रिया भावनात्मक या किसी दबाव में हो सकती है। लेकिन मुझे लगता है कि अब सभी ठंडे दिमाग से इसपर विचार करेंगे।"
पढ़ें- Holi Special Trains: रेलवे ने दी बड़ी सौगात, किया स्पेशल ट्रेनों का ऐलान, देखिए लिस्ट
चंद ने कहा, "किसान नेताओं को अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। उन्हें वहां बदलाव की मांग करनी चाहिए जहां उन्हें लगता है कि यह उनके हित के खिलाफ है।"
पढ़ें- गुरुग्राम-द्वारका एक्सप्रेस-वे पर निर्माणाधीन फ्लाईओवर का एक हिस्सा गिरा
उन्होंने कहा कि आंदोलन कर रहे किसानों को अपनी बात खुले दिल से रखनी चाहिए। अन्यथा उनकी चुप्पी उनके खिलाफ जाएगी। चंद ने कहा, "समाज में यह छवि बन रही है कि यह आंदोलन राजनीतिक हो गया है। ऐसे में किसानों को विस्तार से अध्ययन करना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि अमुक प्रावधान हमारे खिलाफ है।"
पढ़ें- Kisan Andolan: पंजाब में भाजपा विधायक पर हमला, कथित किसानों ने की मारपीट, कपड़े फाड़े
एक सवाल के जवाब में चंद ने कहा कि लोकतंत्र में कोई भी सुधार मुश्किल है। भारत में तो यह और भी मुश्किल है। यहां राजनीति ऐसे बिंदु पर पहुंच चुकी है जिसमें सत्ताधारी दल के किसी फैसले का विपक्ष, चाहे कोई भी हो, विरोध करता है। यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार को अब भी 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का विश्वास है, चंद ने कहा कि इन लक्ष्यों को पाने की दृष्टि से ये तीनों कृषि कानून काफी महत्वपूर्ण हैं।
पढ़ें- 73 साल की रिटायर्ड टीचर को पति की तलाश, मैट्रिमोनियल एड छपवाया
उन्होंने कहा, "मैं कहूंगा कि यदि इन तीनों कृषि कानूनों को तत्काल कार्यान्वित नहीं किया गया, तो यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा। उच्चतम न्यायालय ने भी इन कानूनों को लागू करने को फिलहाल रोक दिया है। पहले से चल रहे अन्य सुधार भी रुक गए हैं।" उच्चतम न्यायालय ने 11 जनवरी को इन कानूनों के कार्यान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी। न्यायालय ने इस मामले में गतिरोध को दूर करने के लिए चार सदस्यीय समिति भी बनाई है। जीन संवर्धित फसलों पर चंद ने कहा कि सरकार को इसपर मामला-दर-मामला विचार करना चाहिए। "हमारा विचार हर जगह जीन संवर्धित फसलों के समर्थन या हर जगह इनके विरोध का नहीं होना चाहिए।"
पढ़ें- Covid-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए बिहार सरकार ने होली, शब-ए-बरात को लेकर आदेश जारी किए