विशाल दुर्ग अपनी पूरी शान के साथ खड़ा हुआ था। और उस दुर्ग के चारों ओर लागभग 36 किलोमीटेर की लंबी दीवार खड़ी थी। मैंने कुछ तस्वीरें क्लिक की और दुर्ग के सदर दरवाज़े से प्रवेश किया। अंदर वाक़ई उत्सव का माहौल था। फूलों से सजावट की गई थी। यज्ञशाला के सामने प्रांगण मे लोक कलाकार अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर रहे थे। काले कपड़ों मे नृत्य करने वाली काल्बेलिया डान्सर्स, रंग बिरंगी पोशाक मे चकरी नृत्य करने वाली महिलाएं। भील जनजाति द्वारा प्रस्तुत नृत्य, जालौर से आए बड़ी-बड़ी ढ़पली बजाने वाला समूह। घूमर नृत्य, घेरदार लाल पोशाक और लाठी के साथ गैर नृत्य करते भील जनजाति के लोग।
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