कारगिल की वीरगाथा: 4 पाकिस्तानी बंकरों को ध्वस्त करने वाले कैप्टन मनोज पांडेय की शौर्यगाथा
कारगिल विजय दिवस के 26 जुलाई को 21 साल पूरे हो गए है। इस 1999 में लड़े गए युद्ध में भारतीय सेनिकों ने अपने पराक्रम की उस अमर कहानी को लिखा जिसपर हर भारतीय गर्व महसूस करता है।
कारगिल विजय दिवस के 26 जुलाई को 21 साल पूरे हो गए है। इस 1999 में लड़े गए युद्ध में भारतीय सेनिकों ने अपने पराक्रम की उस अमर कहानी को लिखा जिसपर हर भारतीय गर्व महसूस करता है। इस युद्ध के 4 बहादुरों को भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। जिनमें से एक थे 24 साल की छोटी सी उम्र में अपने देश पर न्यौछावर होने वाले कैप्टन मनोज कुमार पांडेय। आज हम उनकी असाधारण वीरता की कहानी आपके साथ साझा करेंगे।
यदि अपना शौर्य सिद्ध करने से पूर्व मेरी मृत्यु आ जाये तो ये मेरी कसम है कि मैं मृत्यु को ही मार डालूंगा - कैप्टन मनोज पाण्डेय, परमवीर चक्र
कारगिल की जंग से पहले मनोज कुमार पांडेय की बटालियन सियाचिन में मौजूद थी वहां उनका तीन महीने का कार्यकाल पूरा हो चुका था। उन्हें बदली का इंतजार था। तभी आदेश आया कि बटालियन को कारगिल की तरफ बढ़ना है। वहां से घुसपैठ की खबर थी। कैप्टन मनोज कुमार पांडेय को कारगिल की लड़ाई में 3 जुलाई 1999 को घुसपैठियों से बटालिक सेक्टर कैप्चर कराने की जिम्मेदारी दी गई।
वह अपनी बटालियन के साथ खालुबार टॉप पर कब्जा के इरादे से आगे बढे, वो कुछ दूर आगे निकले ही थे कि विरोधी को उनके आने की आहट हो गई। उन्होनें पहाड़ियों में छिपकर फायरिंग शुरू कर दी। ऐसे में उन्होनें रणनीति बना रात होने का इंतजार किया और फिर दुश्मनों का चकमा देते हुए पहाड़ी पर चढ़ गए।
यह भी पढ़ें-
घायल शेर की तरह कैप्टन विक्रम बत्रा ने किया था दुश्मन का सफाया, शौर्य जानकर दंग रह जाएंगे आप
कारगिल की संपूर्ण विजयगाथा, पढ़िए हर एक दिन की फतह और हर वीर के पराक्रम की पूरी कहानी
परमवीर चक्र सीरियल' से लेकर 'परमवीर चक्र' से सम्मानित होने तक, कैप्टन विक्रम बत्रा के जुड़वा भाई से जानिए पूरी शौर्यगाथा
19 साल का लड़का और लग चुकी थी 15 गोलियां, लेकिन योगेंद्र यादव ने खत्म किए कई दुश्मन सैनिक
ऊपर पहुंचते ही मनोज कुमार पांडे ने पाकिस्तानी बंकरों पर हमला बोला दिया और उनके बंकर उड़ाने शुरु कर दिए। दुश्मनों को जबतक कुछ समझ में आता उन्होनें दो बंकरों को नष्ट कर दिया और चार पाकिस्तानी जवानों को ढेर कर दिया। तीसरे बंकर को नष्ट करने के दौरान वह घायल हो चुके थे। उनके कंधे और पांव में चोट आई थी। अपनी जान की परवाह ना करते हुए वह चौथे बंकर को खाली कराने के लिए आगे बढ़े और बढ़े साहस के साथ दुश्मन के चौथे बंकर को ग्रेनेड से उड़ा दिया। मगर पाकिस्तानियों ने उन्हें देख लिया और अपनी मशीन गन को उनकी तरफ घुमाकर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं।
दरअसल, वो खुद खालुबार टॉप पर तिरंगा फहराना चाहते थे। यही कारण था कि वो विषम परिस्थितियों में भी आगे बढ़ते गए। कैप्टन मनोज पांडे के इस जज्बे और जांबाजी के लिए उन्हें सर्वोच्च गैलेंट्री अवॉर्ड परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इंडिया टीवी उनके साहस के आगे नतमस्तक है।