Kargil Vijay Diwas 2019: ये हैं वो वीर सपूत जिन्होंने पाकिस्तान को नाकों चने चबवाए
कारगिल युद्ध में 540 से अधिक वीर योद्धा शहीद और 1300 से ज्यादा घायल हुए थे जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है।
नई दिल्ली: करगिल विजय दिवस के आज 20 साल पूरे हो गए हैं। इस मौके पर दिल्ली से द्रास तक शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी जा रही है। कारगिल युद्ध में 540 से अधिक वीर योद्धा शहीद और 1300 से ज्यादा घायल हुए थे जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है।
यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का, जो हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया। इस युद्ध में वीरता और बलिदान के ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जिससे देशवासियों को अपनी सशस्त्र सेनाओं पर गर्व करने और उनके द्वारा दर्शाए गए अदम्य साहस का अनुकरण करने की प्रेरणा देते रहेंगे।
लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया
4 जाट रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया अपने 4 जवानों के साथ 14 मई को पेट्रोलिंग पर निकल गए और बजरंग पोस्ट पर बैठे घुसपैठियों का मुकाबला किया पर गोला-बारूद खत्म होने पर दुश्मन की गिरफ्त में आ गए। तीन हफ्ते बाद उनके और साथियों के क्षत-विक्षत शव भारतीय अधिकारियों को सौंपे गए। उन्हे बुरी तरह यातनाएँ देकर मारा गया था।
कैप्टन विक्रम बत्रा
हिमाचल प्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा उन बहादुरों में से एक हैं, जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी। यहाँ तक कि पाकिस्तानी लड़ाकों ने भी उनकी बहादुरी को सलाम किया था और उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से नवाजा था। अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
कैप्टन अनुज नायर
17 जाट रेजिमेंट के कैप्टन अनुज नायर टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई में अपने 6 साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा सम्भाले रहे। गम्भीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अतिरिक्त कुमुक आने तक अकेले ही दुश्मनों से लोहा लिया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना इस सामरिक चोटी पर भी वापस कब्जा करने में सफल रही। इस वीरता के लिए कैप्टन अनुज को मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया।
लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय
1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय अपनी पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में लड़ते हुए मनोज पांडेय ने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए। गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद मनोज अंतिम क्षण तक लड़ते रहे। भारतीय सेना की ‘साथी को पीछे ना छोडने की परम्परा’ का मरते दम तक पालन करने वाले मनोज पांडेय को उनके शौर्य व बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव
ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव के प्लाटून घातक को टाइगर हिल पर कब्जा करने का टास्क मिला था। 4 जुलाई 1999 को इनके प्लाटून ने टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए हमला बोल दिया। चढ़ाई सीधी थी और टास्क काफी मुश्किल। पर इनके प्लाटून ने आखिरकार टाइगर हिल पर तिरंगा लहरा ही दिया। इन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। ये सबसे कम मात्र 19 वर्ष कि आयु में ‘परमवीर चक्र’ प्राप्त करने वाले सैनिक हैं।
राइफलमैन संजय कुमार
13, जम्मू एंड कश्मीर राइफल के राइफलमैन संजय कुमार ने मुश्कोह घाटी में चार जुलाई को पॉइंट 4875 पर कब्जा करने के लिए निकले, लेकिन दुश्मन का ऑटोमैटिक फायर उनके रास्ते में बाधा बनकर आ गया। उन्होंने गोलियों की परवाह किए बगैर दुश्मन पर हमला बोल दिया और बेहद नजदीकी लड़ाई में उनके तीन सैनिक मार गिराए। जांघ में गोली लगी होने के बावजूद दुश्मन के पांच सैनिकों को मार गिराया, उनकी एक मशीनगन उठा लाए और ग्रेनेड के हमले से दुश्मन की चौकी उड़ा डाली। इन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन विजयंत थापर
करगिल लड़ाई के वक्त भारतीय सेना के 2, राजपूताना राइफल्स में तैनात कैप्टन विजयंत थापर की तैनाती ‘डर्टी डजन’ नामक उस 12 सदस्यीय दल में हुई थी, जिसका काम टोलोलिंग कैप्चर करना था। टोलोलिंग को सफलतापूर्वक कैप्चर करने के बाद उन्हें थ्री पिंपल्स और नॉल पर कब्जा करना था। पूरी चांद की रात में वे पहाड़ के खतरनाक किनारों से होते हुए दुश्मन की ओर बढ़े। वे ऊपर पॉजीशन लिए दुश्मन के बंकर के करीब पहुंच गए और लड़ते रहे। महज 15 मीटर की दूरी बनाए हुए उन्होंने दुश्मन पर जबर्दस्त प्रहार किया और वहीं लड़ते हुए शहीद हुए। इन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
राजपूताना राइफल्स के मेजर पद्मपाणि आचार्य भी कारगिल में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके भाई भी द्रास सेक्टर में इस युद्ध में शामिल थे। उन्हें भी इस वीरता के लिए ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
फ्लाइट लेफ्टिनेंट के. नचिकेता
करगिल युद्ध में पाकिस्तान ने एक ही भारतीय को युद्धबंदी बनाया था। ये थे फ्लाइट लेफ्टिनेंट के. नचिकेता। 27 मई 1999 को जब नचिकेता ने बटालिक सेक्टर में दुश्मन के ठिकानों पर मिग-27 विमान से निशाना साधने की कोशिश की थी, उसी दौरान उनका विमान इंजन में खराबी की वजह से नीचे गिरा था। इसके बाद नचिकेता ने खुद को प्लेन से इजेक्ट किया था और फिर पकड़े गए थे। जंग खत्म होने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया था।
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान भी दुश्मन गोलीबारी का शिकार हुआ। अजय का लड़ाकू विमान दुश्मन की गोलीबारी में नष्ट हो गया, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट से उतरते समय भी शत्रुओं पर गोलीबारी जारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।
यह भी पढ़ें
Kargil Vijay Diwas 2019: ये हैं करगिल युद्ध के कुछ चौंकाने वाले राज़
करगिल के 20 साल: 4 बंकरों पर कब्जा जमाकर शहीद हुए थे मनोज पांडेय, आखिरी शब्द थे 'ना छोड़नु'
कारगिल के 20 साल: जानिए परमवीर चक्र विजेता राइफलमैन संजय कुमार ने कैसे किया था दुश्मनों का सफाया
Kargil Vijay Diwas 2019: ऑपरेशन विजय को 20 साल पूरे, दिल्ली से द्रास तक शहीद जवानों को श्रद्धांजलि
Kargil Vijay Diwas 2019: पीएम मोदी ने वीडियो शेयर कर बताई करगिल युद्ध की कहानी