तीसरे नंबर पर जस्टिस जोसफ को शपथ ग्रहण करवाने पर विवाद गहराया, जूनियर जज मानने पर खफा हुए कई सीनियर जज
उच्च न्यायालय के न्यायधीश के एम जोसफ की नियुक्ति को लेकर चल रहा विवाद रुकने का नाम नहीं ले रहा।
नयी दिल्ली: उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायधीश के एम जोसफ की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति को लेकर चल रहा विवाद रुकने का नाम नहीं ले रहा। सरकार ने शनिवार को ही साफ किया था कि तीन नए न्यायाधीशों को उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। ये तीन नए जज उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के एम जोसफ, मद्रास उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी और ओडिशा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विनीत सरन हैं। इन तीनों की नियुक्ति से जुड़ी अधिसूचना शनिवार को जारी कर दी गयी है।
शपथ लेने से पहले गहराया विवाद
इन तीनों जजों के मंगलवार को शपथ लेनी है लेकिन इससे पहले ही एक नया विवाद सामने आ गया है। सरकार द्वारा भेजे गए नामों में न्यायाधीश के एम जोसफ का नाम तीसरे नंबर पर रखा गया है। इसका मतलब है कि वो तीसरे नंबर पर शपथ लेंगे। इस बात पर कई दूसरे जज विरोध पर उतर आए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जस्टिस जोसफ को तीसरे नंबर पर शपथ दिलाने का मतलब उन्हे एक जूनियर जज का दर्जा देने से हैं। क्योंकि जो जज बाद में शपथ लेते हैं उन्हें जूनियर माना जाता है। इसको लेकर कई सीनियर जज नाराज है, साथ ही मुख्य न्यायधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के सामने अपनी आपत्ति भी दर्ज करा सकते हैं।
नाम की सिफारिश एक बार लौटा चुका है केंद्र
न्यायमूर्ति जोसफ की उच्चतम न्यायालय में नियुक्ति को लेकर पहले भी केंद्र सरकार और न्यायपालिका में टकराव दिख चुका है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने इस साल 10 जनवरी को उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए न्यायमूर्ति जोसफ के नाम की सिफारिश की थी। लेकिन सरकार ने वरिष्ठता का हवाला देते हुए 30 अप्रैल को सिफारिश को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया था। कार्यपालिका ने यह भी कहा था कि इससे कई उच्च न्यायालयों का प्रतिनिधित्व नहीं होगा और न्यायमूर्ति जोसेफ की पदोन्नति क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के खिलाफ होगी। उनका मूल उच्च न्यायालय केरल उच्च न्यायालय है।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के खिलाफ सुना चुके हैं फैसला
नयी नियुक्तियों के बाद शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 25 हो गयी। लेकिन अब भी छह पद रिक्त हैं। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति जोसफ ने 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को पलट दिया था। हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने के बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला किया गया था।