झारखंड के मंत्री आलमगीर ने उड़ाई Lockdown की धज्जियां, लोगों के पलायन में की मदद
एक ओर पूरे देश में कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन है, वहीं दूसरी ओर राज्य के कुछ नेता इसको लेकर राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। चाहे वे राज्य के कैबिनेट मंत्री हों अथवा उनके मातहत काम करने वाले अधिकारी।
रांची: एक ओर पूरे देश में कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन है, वहीं दूसरी ओर राज्य के कुछ नेता इसको लेकर राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। चाहे वे राज्य के कैबिनेट मंत्री हों अथवा उनके मातहत काम करने वाले अधिकारी। देश की राजधानी दिल्ली में निजामुद्दीन मरकज को लेकर शासन-प्रशासन में खलबली मची हुई है, अब उसके तार झारखंड से भी जुड़ गए हैं। इस तार को जोडने वाले कोई और नहीं, राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम हैं। इस कार्य में उनके सहयोगी के रूप में रांची के उपायुक्त का नाम भी आ रहा है, जिन्हें राज्य के मुख्य सचिव की ओर से शोकॉज नोटिस भी दिया जा चुका है।
बताया जाता है कि निजामुद्दीन मरकज में शामिल कुछ लोग झारखंड से भी गये थे, जो दिल्ली से मजदूरों के पलायन के वक्त लौट आये थे। राज्य की सीमा में जहां आम नागरिक को घुसने में दिक्कत है, वहीं एक आम व्यक्ति के पत्र को लेकर रांची के उपायुक्त विशेष व्यवस्था करते हैं। बताया जाता है कि इन लोगों को पाकुड विधानसभा और महेशपुर विधानसभा जाना था। लेकिन, इस क्षेत्र में इन्हें नहीं भेजा गया। इन्हें राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम की शह पर लिट्टीपाडा विधानसभा में मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर एक गांव के स्कूल में ठहराने की व्यवस्था कराई जा रही थी।
यहां यह जानना जरूरी है कि मंत्री आलमगीर आलम पाकुड़ से ही आते हैं। लिट्टीपाडा विधानसभा के स्थानीय नागरिकों और आदिवासियों ने कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए पूरा बंद किया हुआ है, इस कारण इन लोगों का मामला प्रकाश में आया। आलमगीर आलम ने अपने वोट बैंक को बचाने के लिए न तो केन्द्र सरकार के आदेश की परवाह की और न ही राज्य सरकार के एहितायती कदम की। सूत्रों के मुताबिक, इन लोगों में अधिकांश लोग बांग्लादेश के थे, जिन्हें पाकुड़ के रास्ते बांग्लादेश की सीमा तक पहुंचाने की व्यवस्था की गई थी।
रांची के उपायुक्त के सरकारी आदेश के पत्र को पढ़ने के बाद स्वत: ही पूरा मामला समझ में आ जाता है। 29 मार्च, 2020 को ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम व किसी अजीम शेख की सिफारिश पर नौ गाड़ियों को पाकुड़, कोडरमा व साहेबगंज भेजने की अनुमति दी थी। यह सरासर लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन था। सरकारी आदेश पत्र पर इन नौ गाडियों का पूरा विवरण है। सवाल यह उठता है कि किसी एक व्यक्ति की मांग पर कोई उपायुक्त कैसे नौ बसों का प्रबंध कर सकता है?
हैरत की बात तो यह भी है कि रांची जिला प्रशासन द्वारा बसों से मजदूरों के भेजे जाने के बाद संबंधित जिलों के प्रशासन के सामने अजीब सी स्थिति पैदा हो गयी। मजदूरों को भेजे जाने की जानकारी संबंधित डीसी को थी ही नहीं, क्योंकि रांची जिला प्रशासन के द्वारा सिर्फ मंत्री आलमगीर आलम, संबंधित जिला के एसपी और थानेदार को सूचना दी गई थी। रांची जिला प्रशासन ने ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम और किसी आजिम शेख के कहने पर रांची से नौ बसों को दूसरे जिले में जाने की लिखित रूप से अनुमति दे दी। बसों से रांची में मजदूरी कर रहे लोगों को उनके घर जाने दिया गया।
रांची डीसी के आदेश पर चार बस साहेबगंज, दो कोडरमा और पांच बसों को पाकुड़ जाने की अनुमति दी गईं। ध्यान रहे कि 29 मार्च, 2020 को केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से देश से सभी मुख्य सचिवों को एक निर्देश जारी किया गया है। निर्देश में इस बात का साफ उल्लेख है कि जिला प्रशासन सख्ती से दूसरे जगहों से आये लोगों की आवाजाही पर रोक लगाएगा। उन्हें क्वारंटाइन से जुड़ी हर सुविधा देना जिला प्रशासन की जिम्मेदारी होगी। मजदूरों के लिए रहने और भोजन की सुविधा भी जिला प्रशासन की जिम्मेदारी होगी। उनकी मजदूरी सुनिश्चित करना और उन्हें मकान मालिक घर से ना निकाले, इन सभी बातों का ख्याल सख्ती से जिला प्रशासन को रखना है।
यह पूरा आदेश हर उपायुक्त को है, तो आखिर रांची के उपायुक्त ने इसका पालन क्यों नहीं किया? यदि उनके उपर मंत्री आलमगीर आलम का दबाव था, तो उन्होंने राज्य के आला अधिकारियों को इसकी सूचना क्यों नहीं दी? बता दें कि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी उसी संथाल क्षेत्र से आते हैं, जहां से आलमगीर आलम प्रतिनिधित्व करते हैं। उल्लेखनीय है कि भाजपा के नेता बाबूलाल मरांडी ने भी इस मामले की जांच की मांग की है और इस बाबत राज्यपाल को पत्र भी लिखा है।