जम्मू-कश्मीर की जेलों में बंद 26 आतंकी शिफ्ट, आगरा सेंट्रल जेल में भेजा
शक है कि इन आतंकियों का कश्मीर में हो रहे हमलों में हाथ हो सकता है। इन्हें एयरफोर्स के स्पेशल विमान से शिफ्ट किया गया है।
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में आतंक के खिलाफ जारी अभियान के तहत सरकार ने एक बड़ी कार्रवाई की है। जम्मू-कश्मीर की अलग-अलग जेलों में बंद 26 हार्डकोर आतंकियों को उत्तर प्रदेश की आगरा सेंट्रल जेल में शिफ्ट किया गया है। घाटी में आतंकी हमलों में आई तेजी को देखते हुए इन आतंकियों को आगरा सेंट्रेल जेल भेजा गया है।
शक है कि इन आतंकियों का कश्मीर में हो रहे हमलों में हाथ हो सकता है। इन्हें एयरफोर्स के स्पेशल विमान से शिफ्ट किया गया है। सरकार इनके अलावा और भी कुछ आतंकियों को कश्मीर से बाहर की जेल में शिफ्ट कर सकती है, इसकी प्रक्रिया भी जारी है।
गौरतलब है कि बीते कुछ दिनों में घाटी के अंदर आतंकी हमलों में तेजी आई है। आतंकियों द्वारा घाटी में गैर-कश्मीरियों की हत्या करने की कई वारदातें हुई हैं। ऐसे में सुरक्षाबल पूरी सतर्कता के साथ काम कर रहे हैं।
'कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्याओं की निंदा करने का वक्त'
आतंकवादियों द्वारा लक्षित हत्याओं के बीच, सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि कश्मीर में कुछ वर्गों के लिए ‘चुनिंदा मनोभ्रंश’ पर काबू पाने और नागरिकों की हत्या की निंदा करने का समय आ गया है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को बचाया जा सके और लोगों के दुख का अंत हो सके।
रक्षा खुफिया एजेंसी के महानिदेशक और एकीकृत रक्षा स्टाफ के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लों ने कहा कि निर्दोष नागरिकों पर इस तरह के हमले करके अपराधी समाज की जड़ों को निशाना बना रहे हैं और ऐसे लोग कभी भी कश्मीर के दोस्त नहीं हो सकते।
लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों ने बुधवार को श्रीनगर में एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘पिछले तीन दशक में, कश्मीरी समाज को नुकसान हुआ है और कश्मीर की जड़ों पर चोट पहुंचाई गई है। हमारे पास अपनी भावनाओं का अधिकार है, लेकिन आतंकवादियों द्वारा जब कभी हत्या होती है तो चयनित उन्मत्ता की स्थिति होती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी इसके (निर्दोषों की हत्या) खिलाफ नहीं बोल रहा है, कुछ इस प्रकार कि पुरुष या महिला ने हर चीज के बारे में बोलने का अधिकार खो दिया है। दुनिया बाद में पूछेगी कि जब आप निर्दोष हत्याओं पर चुप थे, तो अब आपको क्यों सुना जाना चाहिए।’’
लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कश्मीर की 66 प्रतिशत आबादी 32 वर्ष से कम उम्र की है और उन्हें ‘संघर्ष काल के बच्चों’ के तौर पर संदर्भित किया जा सकता है एवं उनके मनोविज्ञान को समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि युवा आबादी के मनोविज्ञान और माताओं के दर्द को समझने की जरूरत है।
लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों ने कहा, ‘‘2011 की जनगणना के अनुसार, कश्मीर की 62 प्रतिशत आबादी 32 वर्ष से कम आयु की है और आज यह लगभग 66 प्रतिशत हो गयी होगी, जिसका अर्थ है कि 66 प्रतिशत आबादी इन तीन दशकों (आतंकवाद) के दौरान पैदा हुई थी और इस प्रकार ये संघर्ष काल के बच्चे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वे बंदूक संस्कृति, हमलों, कर्फ्यू और कार्रवाई के दौरान पैदा हुए और बड़े हुए। वे अपने मन-मस्तिष्क पर एक निशान के साथ बड़े हुए हैं। वे कट्टरता और दुष्प्रचार के साये में बढ़े हैं। यह एक समस्या है और हमें उनके मनोवैज्ञानिक को समझने की जरुरत है।’’
लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा, ‘‘हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारी जड़ों पर हमला किया जा रहा है, चाहे वह शिक्षा हो, व्यवसाय हो, आजीविका हो, और ऐसा करने वाले हमारे दोस्त नहीं हो सकते। इसे एक आम कश्मीरी को समझना होगा।’’