काबू किया गया IS Operative, खाड़ी देशों में रहने के दौरान बना कट्टरपंथी
एक ग्रामीण ने बताया कि 2006 से पहले, मुस्तकीम भी अपने परिवार और अन्य ग्रामीणों की तरह इस्लाम के सूफी बरेलवी संप्रदाय का अनुयायी था। मगर जब वह खाड़ी से लौटा, तो उसने अपने परिवार को अहल-ए-हदीस में बदलने के लिए राजी कर लिया।
उतरौला. दिल्ली पुलिस द्वारा पिछले सप्ताह काबू किया गया कथित इस्लामिक स्टेट ऑपरेटिव मोहम्मद मुस्तकीम खान उर्फ अबू यूसुफ खान की परवरिश उतरौला के छोटे से मुफस्सिल कस्बे से लगभग 10 किलोमीटर दूर बढ़या भैसाही में हुई थी। यह उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है। यहां एक प्राथमिक विद्यालय, एक मस्जिद और एक साबुन का कारखाना है। एक राष्ट्रीय राजमार्ग असम रोड से लगभग एक किलोमीटर दूर बढ़या भैसाही एक बहुत ही शांतिपूर्ण गांव है।
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मुस्तकीम के आईएस ऑपरेटिव के तौर पर अबू यूसुफ बनने की कहानी खाड़ी देशों से शुरू हुई। मुस्तकीम 2006 से 2010 तक खाड़ी देशों में रहता था और उस दौरान वह यूट्यूब और सोशल मीडिया पर आतंकी समूह आईएसआईएस के कट्टरपंथी प्रचारकों से प्रभावित हो गया। एक ग्रामीण ने बताया कि 2006 से पहले, मुस्तकीम भी अपने परिवार और अन्य ग्रामीणों की तरह इस्लाम के सूफी बरेलवी संप्रदाय का अनुयायी था। मगर जब वह खाड़ी से लौटा, तो उसने अपने परिवार को अहल-ए-हदीस में बदलने के लिए राजी कर लिया।
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने संप्रदाय परिवर्तन के कारण मुस्तकीम के परिवार से बातचीत बंद कर दी थी। उनके बुजुर्ग पिता कफील अहमद खान, एक किसान हैं, जो एक साधारण से घर में रहते हैं और लगभग पांच एकड़ जमीन के मालिक भी हैं। इसमें से आधी जमीन परिवार खुद जोतता जबकि बची हुई आधी जमीन पर साझेदारी के तौर पर सब्जी उगाई जा रही है। यह परिवार ज्यादातर धान और गेहूं के साथ ही कभी-कभी गन्ने की फसल भी उगाता है। ये नकदी फसल भी मानी जाती हैं और इस क्षेत्र में चीनी मिलें भी हैं।
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मुस्तकीम के तीन भाई और चार बहनें हैं। दो भाई खाड़ी देशों में रहते हैं, जबकि तीन बहनें शादीशुदा हैं। उसका छोटा भाई अकीब एक सेफ्टी इंजीनियर है, जो हैदराबाद में कार्यरत है और राष्ट्रव्यापी बंद के कारण वापस आ गया है। अकीब ने कहा, "हम मीडिया या किसी और से इस मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते हैं।" हालांकि अकीब ने यह सुनिश्चित किया कि परिवार कट्टरपंथी समूह के प्रति मुस्तकीम के झुकाव के बारे में अनजान था।
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मुस्तकीम हाशिमपारा में कॉस्मेटिक की एक छोटी सी दुकान चलाता था, जो कि उसके गांव से लगभग दो किलोमीटर दूर एक छोटे से बाजार में स्थित है। वहां पर अब एक अन्य दुकानदार मुजीबुल्लाह हैं, जिन्होंने कहा, "वह अपने आप में ही रहता था और कभी-कभार ही दूसरों से बात करता था। उसका सामाजिक व्यक्तित्व नहीं था।"
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कफील अहमद खान ने अपने बेटे के बारे में बताते हुए कहा, "उसने नौवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ दिया था। वह पहले रायपुर में रहता था। फिर खाड़ी से लौटने के बाद उसने प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) का अपना काम शुरू किया। कफील ने बताया, "उसका एक कार्य स्थल (वर्क साइट) उत्तराखंड में है। एक बार वह छत से गिर गया था और उसकी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई थी। उसका इलाज लखनऊ के एक प्रमुख न्यूरो चिकित्सक द्वारा किया गया। इसके बाद हमने हाशिमपारा बाजार में दुकान खोलने के लिए उसका समर्थन किया।"
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उसने एक स्थानीय पटाखा निर्माता से विस्फोटक खरीदना शुरू कर दिया था और उसे अपने घर पर संग्रहीत करना शुरू किया था। पटाखा निर्माता को भी पुलिस ने उठाया, लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया गया। मुस्तकीम उर्फ अबू यूसुफ के चार बच्चे हैं। परिवार सख्त पर्दा व्यवस्था का पालन करता है। उसके पिता ने कहा, "मैं किसी भी बच्चे के कमरे में नहीं जाता था और इसलिए मैंने नहीं देखा कि उसने क्या संग्रहित (जमा) किया था और वह धर्म के बारे में बहुत सख्त था।"
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कफील अहमद ने कहा, "अगर मुझे कोई जानकारी होती तो मैं उसे रोक देता, क्योंकि परिवार ने प्रतिष्ठा से लेकर सामाजिक बंधन तक सब कुछ खो दिया है। क्योंकि लोग हमारे घर आने से बचते हैं।" उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके कमरे से बरामद सामग्री वास्तविक थी और पुलिस ने बिना किसी पूर्वाग्रह के उनके साथ सहयोग किया। जब पूछा गया कि मुस्तकीम दिल्ली कैसे पहुंचा? उन्होंने कहा कि वह नहीं जानते हैं।
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कफील ने कहा कि उसका भतीजा किडनी प्रत्यारोपण कराने वाला था। इसलिए मुस्तकीम लखनऊ में अपने चचेरे भाई की देखभाल करने के लिए गया था और वह उतरौला से लखनऊ के लिए बस में चढ़ा। हालांकि, जब वह कफील की बहन के पास नहीं पहुंचा तो राज्य की राजधानी के डबगा पुलिस स्टेशन में एक शिकायत दी गई। अगले दिन वह उतरौला कोतवाली गए और तभी पुलिस दरवाजे पर दस्तक देने आई। पिता ने दावा किया कि दिल्ली से आए पुलिसकर्मियों ने उन्हें बताया कि मुस्तकीम ने उनका साथ दिया और उन्हें सारी जानकारी दी।