नई दिल्ली. IANS सी-वोटर के तिब्बत (Tibet) सर्वेक्षण के मुताबिक, करीब-करीब 80 प्रतिशत भारतीय (Indians) चाहते हैं कि तिब्बत एक स्वतंत्र देश बने। इस सर्वेक्षण में तमाम तरह के कुल दस सवाल लोगों से पूछे गए और उत्तरदाताओं से उनके सटीक जवाब के लिए पांच मिनट से अधिक बातचीत की गई। उनके राय बेहद स्पष्ट थे। इस सर्वेक्षण के बारे में अच्छी बात यह है कि अधिकतर भारतीय इस कारण का समर्थन और भी ज्यादा करेंगे, यदि उन्हें इस बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी उपलब्ध कराई जाए और वे इस पर सोचना शुरू करें। इसके नकारात्मक पहलू की बात करें, तो लोगों को वाकई में इस पर और अधिक जानकारी देने की जरूरत है। इसके बारे में जो सबसे अधिक खराब बात है, वह ये कि वाकई में ऐसा कोई कर नहीं रहा है।
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साल 2016 में भारत सरकार द्वारा अपनाई गई हालिया नीतियों के चलते तिब्बत की निर्वासित सरकार के बारे में लोगों को कम पता है। इस पर सभी को प्रयास करने की जरूरत है। सर्वेक्षण के दौरान लोगों से बातचीत करते वक्त पता चला कि लगभग 75 फीसदी लोगों को इस बारे में बिल्कुल भी कोई जानकारी नहीं है। भारत में लोगों ने बेलारूस और कजाकिस्तान की राजनीतिक स्थितियों और चुनावों पर चर्चा करना बंद कर दिया है, लेकिन इसी के साथ-साथ उन्हें तिब्बत के नियमित चुनावों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है, जिसके माध्यम से तिब्बतियों को निर्वासन में रहकर अपनी सरकार का चुनाव करना पड़ा।
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सर्वेक्षण में प्राप्त हुए नतीजे के मुताबिक, निर्वासित तिब्बती सरकार के ठिकाने के बारे में भी लोग को कम जानकारी है। यह वाकई में एक चौंकाने वाली बात है कि लोगों को इस बारे में कुछ भी अधिक जानकारी नहीं है। दरअसल, सोशल मीडिया पर इस पर कभी चर्चाएं सामने उठकर भी नहीं आई हैं। अधिकतर बातें यहां की खूबसूरती, मशहूर पर्यटन केंद्र, पर्यटकों के करने लायक चीजों के बारे में ही होती हैं।
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तकरीबन तीन चौथाई उत्तरदाताओं ने तिब्बत का समर्थन भारत और चीन के बीच एक बफर जोन के रूप में किया। यह भविष्य में तिब्बतियों के प्रसार के लिए एक सकारात्मक कदम है। भारत में चीन विरोधी भावनाएं इस वक्त अपने चरम पर है और तिब्बत को लेकर भी लोगों में सामान्य चर्चाएं जारी हैं, लेकिन सर्वेक्षण के मुताबिक, इस पर शुरू से लेकर अंत तक गहन व पूरी जानकारी भली-भांति मुहैया कराए जाने की जरूरत है। सर्वेक्षण में नमूने के तौर पर देशभर से 3,000 लोगों से बात की गई।
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