धारा 377: समलैंगिकता पर फैसला सुनाते हुए जजों ने कही ये बड़ी बातें
समलैंगिक संबंध अपराध है या नहीं इस पर फैसला करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, समलैंगिकता अब अपराध नहीं है। CJI दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, समलैंगिकों को सम्मान के साथ जीने का पूरा अधिकार है।
IndiaTV Hindi Desk Sep 06, 2018, 14:30:38 IST
समलैंगिक संबंध अपराध है या नहीं इस पर फैसला करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, समलैंगिकता अब अपराध नहीं है। CJI दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, समलैंगिकों को सम्मान के साथ जीने का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट में आज 5 जजों की बेंच ने आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता पर अपना फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायधीश ने कहा कि, LGBT समुदाय के अधिकार भी देश के अन्य सामान्य नागरिकों की तरह हैं, देश के हर नागरिक के अधिकारों की सम्मान सबसे बड़ी मानवता है और Gay Sex को दंडनीय अपराध बताना तर्कहीन है। इस फैसले के बाद भारत दुनिया के उन देशों में शुमार हो गया है जिसने समलैंगिकता को मान्यता दी है। आइए जानते हैं 5 जजों की बेंच ने इसपर क्या फैसला सुनाया।
- उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध को एक मत से अपराध के दायरे से बाहर किया।
- उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के एक हिस्से को, जो सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बताता है, तर्कहीन, बचाव नहीं करने वाला और मनमाना करार दिया।
- उच्चतम न्यायालय धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया क्योंकि इससे समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पशुओं और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन क्रिया से संबंधित धारा 377 का हिस्सा पूर्ववर्त लागू रहेगा।
- पशुओं के साथ किसी तरह की यौन क्रिया भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत दंडनीय अपराध बनी रहेगी : उच्चतम न्यायालय।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 एलजीबीटी के सदस्यों को परेशान करने का हथियार था, जिसके कारण इससे भेदभाव होता है।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मानवीय और मौलिक अधिकार हैं।
- प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपनी और न्यायाधीश ए एम खानविलकर ओर से कहा कि खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाना मरने के समान है।
- न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने एकमत वाले फैसले अलग-अलग लिखे।
- अदालतों को व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी गई है : उच्चतम न्यायालय।
- उच्चतम न्यायालय ने यौन रुझान को जैविक स्थिति बताते हुए कहा कि इस आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- सरकार, मीडिया को उच्चतम न्यायलय के फैसले का व्यापक प्रचार करना चाहिए ताकि एलजीबीटीक्यू समुदाय को भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े : न्यायमूर्ति नरीमन
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जहां तक किसी निजी स्थान पर आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का सवाल है तो ना यह हानिकारक है और ना ही समाज के लिए संक्रामक है।
- न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा: भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के कारण एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाया जाता रहा है और उनका उत्पीड़न किया जाता था।
- न्यायमूर्ति चंदचूड़ ने कहा, एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को अन्य नागरिकों की तरह संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं।
- संविधान समाज के सेफ्टी वाल्व के रूप में असहमति का पोषण करता है, हम इतिहास नहीं बदल सकते लेकिन बेहतर भविष्य के लिए राह प्रशस्त कर सकते हैं : उच्चतम न्यायालय।
- धारा 377 के कारण एलजीबीटी सदस्य छुप कर और दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में रहने को विवश थे जबकि अन्य लोग यौन पसंद के अधिकार का आनंद लेते हैं : उच्चतम न्यायालय। एलजीबीटीक्यू समुदाय को अधिकार देने से इंकार करने और डर के साथ जीवन जीने के लिए बाध्य करने पर इतिहास को इस समुदाय से माफी मांगनी चाहिए : न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा।