नई दिल्ली: 8 दिसंबर! ये तारीख हिंदुस्तान की हिफाजत में लगी भारतीय नौसेना के लिए एक मजबूत स्तंभ के तौर पर उभरी थी। वो साल था 1967 और तारीख थी 8 दिसंबर, जब पहली पनडुब्बी ‘कलवरी’ को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। ‘कलवरी’ के भारतीय नौसेना में शामिल होते ही विरोधियों को सीधा संदेश गया था,- ‘अब जरा संभलकर’!
सोवियत संघ से ली पहली पनडुब्बी
पहली ‘कलवरी’ पनडुब्बी को सोवियत संघ (रूस) से लिया गया था। ये 'टाइप 641' क्लास की पहली पनडुब्बी थी जिसे 'नाटो' ने 'फोक्सट्रॉट' क्लास नाम दिया था। अब तो लातविया एक देश है लेकिन उस वक्त सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था। और, सोवियत संघ ने लातविया के रिगा बंदरगाह पर ‘कलवरी’ भारतीय नौसेना को सौंपी था।
ब्रिटेन का दुराग्रही रवैया
भारत ने सोवियत संघ से पनडुब्बी जरूर ली थी लेकिन कई तरह के हालातों के बीच पहले भारत सरकार ने ब्रिटेन से चार पनडुब्बियां खरीदने की प्लानिंग की थी। 1963 में भारत सरकार ने पनडुब्बी खरीदने की मंजूरी भी दे दी लेकिन ब्रिटेन ने पनडुब्बियां बेचने के लिए वार्ताओं में काफी दुराग्रही रवैया अपनाया। जिसके बाद ही भारत ने सोबियत संघ का रुख किया था।
30 साल बाद रिटायर हुई 'कलवरी'
फिलहाल, पहली ‘कलवरी’ का इस्तेमाल नहीं होता है। भारतीय नौसेना से इसे 31 मार्च 1996 को 30 वर्ष की राष्ट्रसेवा के बाद रिटायर कर दिया गया। इसका नाम हिंद महासागर में पाई जाने वाली खतरनाक टाइगर शार्क के नाम पर रखा गया था। इसके बाद विभिन्न श्रेणियों की बहुत सी पनडुब्बियां नौसेना का हिस्सा बनीं।
...एक और 'कलवरी'
फ्रांस के सहयोग से देश में ही निर्मित स्कार्पीन श्रेणी की आधुनिकतम पनडुब्बी को पिछले बरस नौसेना में शामिल किया गया और इसका नाम भी कलवरी ही रखा गया है। कलवरी को दुनिया की सबसे घातक पनडुब्बियों में से एक माना जाता है। भारत में ऐसी 5 और पनडुब्बी तैयार की जाएंगी।
दुश्मनों जरा संभलकर
आधुनिकतम तकनीक से निर्मित पनडुब्बी एक बेहतरीन मशीन है और समुद्र के नीचे एक खामोश प्रहरी की तरह रहती है। जरूरत पड़ने पर ये दुश्मन की नजर बचाकर सटीक निशाना लगाने और भारी तबाही मचाने में सक्षम होती है।
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