नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज चेतावनी दी कि न्यायिक अनुशासन और ईमानदारी कायम नहीं रहने की स्थिति में संस्थान हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। इसके साथ ही उसने भूमि अधिग्रहण से संबंधित आठ फरवरी के अपने ही एक फैसले के क्रियान्वयन पर वस्तुत: रोक लगा दी। जस्टिस एमबी लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय एक अन्य पीठ के आठ फरवरी के आदेश की आलोचना की।
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस आदर्श गोयल और जस्टिस एमएम शांतनागोदर की पीठ ने फैसला दिया था कि पांच वर्ष की नियत अवधि के भीतर मुआवजा हासिल नहीं किया जाना भूमि अधिग्रहण को रद्द करने का आधार नहीं बनता है। इस फैसले की आलोचना में पीठ ने कहा कि निष्कर्ष तक पहुंचने में न्यायिक अनुशासन में कुछ छेड़छाड़ हुई है क्योंकि मतभिन्नता की स्थिति में इस मामले को वृहद पीठ के समक्ष भेजा जाना चाहिए था।
वर्ष 2014 के फैसले में कहा गया था कि मुआवजे की अदायगी नहीं होना भूमि अधिग्रहण को रद्द करने का आधार बनता है। पीठ ने कहा, ‘‘ यदि आप व्यवस्था से छेड़छाड़ शुरू कर देंगे तो यह कभी बंद नहीं होने वाला। संस्थान हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। बुद्धिमत्ता की जरूरत है और उचित प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। हर संस्थान विशेष कार्य पद्धति पर चलता है। ’’
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