जानें अमरनाथ से क्यों है मुसलमानों का अटूट रिश्ता
कश्मीर में स्थित अमरनाथ तमाम हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और देश भर से श्रद्धालु साल में एक बार अमरनाथ के दर्शन करने आते हैं। ये भले ही हिंदुओं की तीर्थयात्रा हो लेकिन इस यात्रा मुसलमानों का गहरा और ऐतिहासिक नाता है।
कश्मीर में स्थित अमरनाथ तमाम हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और देश भर से श्रद्धालु साल में एक बार अमरनाथ के दर्शन करने आते हैं। ये भले ही हिंदुओं की तीर्थयात्रा हो लेकिन इस यात्रा मुसलमानों का गहरा और ऐतिहासिक नाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि क़रीब 500 साल पहले अमरनाथ गुफा की खोज हुई थी और इसकी खोज करने वाला एक मुसलमान जिसका नाम बूटा मलिक था। दिलचस्प बात ये है कि बूटा मलिक की अगली पीढ़ी आज भी बटकोट नाम की जगह में रहती है और इनका भी अमरनाथ यात्रा से सीधे संबंध हैं।
इसी परिवार के एक सदस्य गुलाम हसन मलिक के अनुसार अमरनाथ गुफा को उनके पूर्वज बूटा मलिक ने खोजा था। उनका दावा है कि बूटा मलिक गड़रिए थे और पहाड़ पर भेड़-बकरियां चराते थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात एक साधु से हुई और दोनों की दोस्ती बन गए। मलिका बताते हैं कि ऐसे ही एक दिन जब बूटा पशु चराते हुए साधु के साथ घूम रहे थे, अचानक उन्हें ठंड लगी और वह पास ही की एक गुफ़ा में चले गए जहां और ठंड थी। उन्हें ठंड में कांपता देख साधु ने उन्हें एक कांगड़ी दे दी जो सुबह होने तक सोने की हो गई।
इलाक़े में प्रचलित कथाओं के अनुसार जब बूटा मलिक गुफा से निकले, तो बाहर उन्हें साधुओं का एक जत्था मिला जो भगवान शिव की तलाश कर रहा था। बूटा मलिक ने उन साधुओं से कहा कि वो अभी भगवान शिव से साक्षात मिलकर आ रहे हैं और वो उन साधुओं को उस गुफा में ले गए जहां उन्होंने रात बिताई थी। जब ये सभी साधु गुफा में पहुंचे तो वहां बर्फ का विशाल शिवलिंग था और साथ में पार्वती और गणेश बैठे हुए थे। इसी घटना के बाद अमरनाथ यात्रा शुरु हुई।
बताया जाता है कि एक समय साधु गुफा के पास से कूद कर आत्महत्या करने लगे थेजान देने लगे और तभी महाराजा रणजीत सिंह के शासन में इसे बंद किया गया था।
अमरनाथ की गुफ़ा की खोज के बाद मुस्लिम परिवार ने पूजापाठ के लिए पास के गांव गणेश्वर से कश्मीरी पंडितों को बुलाया था। अमरनाथ में कश्मीरी पंडित, मलिक परिवार और महंत रहते हैं और ये तीनों मिल कर ही छड़ी मुबारक की रस्म पूरी करते थे।
सोने की कांगड़ी के बारे में कहा जाता है कि ये तत्कालीन राजाओं ने ले ली थी और अब किसी को नहीं पता कि ये कांगड़ी कहां है।
बूटा मलिक की मौत के बाद उनकी दरगाह जंगल में बनाई गई और उन्हीं के नाम पर गांव का नाम बटकोट पड़ा।
अमरनाथ में रहने वाले मुसलमान यात्रा के दौरान मांस नहीं खाते क्योंकि अमरनाथ यात्रा के समय में मांस खाना ठीक नहीं समझते। अमरनाथ उन तीर्थयात्राओं में से है जिसका कश्मीर में मुस्लिम समुदाय पूरे दिल से सम्मान करते हैं।