नई दिल्ली: बहुत सी बोलियों और भाषाओं वाले हमारे देश में आजादी के बाद भाषा को लेकर एक बड़ा सवाल आ खड़ा हुआ। आखिरकार 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। हालांकि शुरू में हिंदी और अंग्रेजी दोनो को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया और संविधान सभा ने देवनागरी लिपि वाली हिंदी के साथ ही अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया, लेकिन 1949 में आज ही के दिन संविधान सभा ने हिंदी को ही भारत की राजभाषा घोषित किया। हिंदी को देश की राजभाषा घोषित किए जाने के दिन ही हर साल हिंदी दिवस मनाने का भी फैसला किया गया, हालांकि पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया।
बता दें कि जब देश आजाद हुआ था, उसके बाद सबसे बड़ा सवाल भाषा को लेकर ही था। भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं ऐसे में किसी एक भाषा को भारत की राजभाषा के रूप में चुनना हमारे संविधान निर्माताओं के लिए बड़ी चुनौती थी। 6 दिसंबर 1946 में आजाद भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ था। 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को संविधान सभा ने मंजूरी दे दी थी, जिसके बाद आजाद भारत का अपना संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हुआ, लेकिन उस समय भी ये बड़ा सवाल था कि राजभाषा के रूप में कौनसी भाषा का चयन किया जाए।
इसके बाद काफी सोच विचार किया गया, फिर हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया। संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था, लेकिन फिर 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में यह वर्णित है कि “संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।
1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए पहल की थी। गांधीजी ने हिंदी को जनमानस की भाषा भी बताया था। जब हिंदी भाषा देश राजभाषा चुनी गई थी, उस समय देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाए।
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