नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में सोमवार को जमानत दे दी। विशेष न्यायाधीश अरविंद कुमार ने 50,000 रुपए के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत पर विक्रमादित्य सिंह को राहत दी। अदालत ने आरोपी पर कई शर्तें भी लगाई जिनमें बिना पूर्व अनुमति के देश छोड़ कर नहीं जाना और मामले में किसी भी गवाह को प्रभावित करने का प्रयास नहीं करना शामिल है।
आरोपी रिहा होने का गलत फायदा उठा सकता है
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश हुए वकील एन के मट्टा और नीतेश राणा ने जमानत याचिका का विरोध किया और कहा कि आरोपी रिहा होने का गलत फायदा उठा सकता है। अदालत अब इस मामले की अगली सुनवाई 19 सितंबर को करेगी। अदालत ने धनशोधन के एक मामले में 24 जुलाई को विक्रमादित्य सिंह और अन्य को समन जारी किया था और 27 अगस्त को हाजिर होने को कहा था।
मनी लॉन्ड्रिंग केस में वीरभद्र सिंह भी आरोपी
मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में विक्रमादित्य सिंह के खिलाफ ईडी द्वारा 21 जुलाई को दायर किए गए आरोपपत्र पर अदालत सुनवाई कर रही थी। इस मामले में हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। आरोपपत्र में तरानी इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रबंध निदेशक वकामुल्ला चंद्रशेखर और राम प्रकाश भाटिया का नाम भी आरोपी के तौर पर शामिल है। इस मामले से संबंधित सीबीआई के एक वाद में भी वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह और अन्य के साथ चंद्रशेखर और भाटिया दोनों आरोपी हैं।
वीरभद्र ने 10 करोड़ की अवैध संपत्ति जमा की थी?
83 वर्षीय वीरभद्र सिंह और 62 वर्षीय उनकी पत्नी के अलावा ईडी के आरोपपत्र में अन्य नामों में यूनिवर्सल एप्पल एसोसिएट के मालिक चुन्नी लाल चौहान, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) एजेंट आनंद चौहान और दो अन्य सह आरोपी प्रेम राज तथा लवन कुमार शामिल हैं। सीबीआई ने दावा किया है कि वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में करीब 10 करोड़ रुपये की संपत्ति जमा की थी जो उनकी कुल आय से अधिक थी। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय को भेजा था। जिसने छह अप्रैल 2016 को सीबीआई को सिंह को गिरफ्तार नहीं करने को कहा और उन्हें जांच में शामिल होने का निर्देश दिया।
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