सियासत के योद्धा की 'अटल' कहानी, बीमारी से हार नहीं मानूंगा...
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए पूरे देश में दुआएं हो रही हैं और यही दुआएं बता रही हैं कि देश अपने नेता अटल बिहारी वाजपेयी को कितना चाहता है।
नई दिल्ली: देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए पूरे देश में दुआएं हो रही हैं और यही दुआएं बता रही हैं कि देश अपने नेता अटल बिहारी वाजपेयी को कितना चाहता है। राजनीति में रहते हुए जनता के बीच अपने लिए दीवानगी पैदा करना कोई आसान काम नहीं है। राजनीति में तरह-तरह के आरोप लगते हैं। दांव पेच का खेल चलता है और इसका सीधा असर सियासी छवि पर पड़ता है। लेकिन, अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी परवाह नहीं की और भारतीय लोकतंत्र के ललाट पर अपने विजय की ये कहानी खुद लिखी।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आजाद हिंदुस्तान के राजनीतिक आसमान पर चमकता वो सितारा हैं, जिन्होंने देश के हर दौर को रौशन किया है। एक दौर था, जब अटल बिहारी वाजपेयी बोला करते थे तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी मुग्ध होकर सुना करते थे।एक दौर आया, जब वे हिंदुस्तान के विदेश मंत्री बने। एक वक्त आया, जब अटल बिहारी वाजपेयी के ही नेतृत्व में बीजेपी का झंडा देश के सिंघासन पर लहराया। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के सिर्फ एक नेता नहीं हैं। वे भारतीय लोकतंत्र के सिर्फ एक पूर्व प्रधानमंत्री नहीं हैं। अटल बिहारी वाजेपेयी भारत के वो रत्न हैं, जिन्होंने भारतीय राजनीति के इतिहास पर अपनी एक अमिट कहानी लिखी है।
देश के कपाल पर अटल बिहारी वाजपेयी ने जो इबारत लिखी है, वो कोई साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता। उत्तर प्रदेश में आगरा के एक छोटा से गांव बटेश्वर का वाजपेयी परिवार अब ग्वालियर में रहता था। वहीं 25 दिसंबर 1924 को कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर अटल का जन्म हुआ। पिता टीचर थे और कवि भी। साधारण परिवार में सात भाई बहन थे और अटल उनमें सबसे छोटे थे। पिता ग्वालियर में नौकरी करते थे लिहाजा अटल जी की शुरुआती पढ़ाई ग्वालियर के सरकारी स्कूल में ही हुई। फिर वहीं के विक्टोरिया कॉलेज और उसके बाद कानपुर के डीएवी कॉलेज।
वो दौर अलग था। एक तरफ भारत की आजादी की लड़ाई, दूसरी तरफ खुद की पढ़ाई। अटल बिहारी वाजपेयी खुद को ना पढ़ाई से अलग कर पाए और ना आजादी की लड़ाई से। एम ए कर लिया, वकालत पढ़ ली और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 23 दिनों के लिए जेल भी गए। आंदोलन का दौर था ही। वे बाबासाहेब आप्टे के संपर्क में आए और 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य बन गए। ये रिश्ता वक्त के साथ और गहरा होता गया। आजादी के बाद जब भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई तो वाजपेयी उसके संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
अटल बिहारी वाजपेयी एक विरासत हैं। ऐसी विरासत, जिनके ईर्द-गिर्द भारतीय सियासत का पूरा सिलसिला चलता है। और ये सिलसिला शुरू हुआ था 1957 से। ये वो साल था, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत की संसद में पहली बार दस्तक दी थी। आजाद हिंदुस्तान के दूसरे आम चुनाव हुए थे। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ के टिकट पर तीन जगह से खड़े हुए थे। मथुरा में जमानत जब्त हो गई। लखनऊ से हार गए। बलरामपुर ने वाजपेयी को अपना सांसद चुना। और एक वक्त ऐसा आया जब वे सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे।
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