नई दिल्ली: प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में एक नया ढाबा खुला है जिसके नियम-कायदे अनोखे हैं। इस ढाबे पर जाने वालों को खुद ही चाय बनानी होती है, वे बैठकर देश-दुनिया के मुद्दों पर चर्चा या आपसी गपशप करते हैं और और वहां से जाने से पहले गिलास धोकर रखते हैं। इस ढाबे का नाम है गुरिल्ला ढाबा, जिसका मालिक कोई नहीं है। यूनिवर्सिटी के छात्र ही इसे चलाते हैं।
दिलचस्प यह है कि सुरक्षा कारणों का हवाला देकर रात 11 बजे तक यूनिवर्सिटी परिसर की सारी कैंटीन बंद कर देने के जेएनयू प्रशासन के फैसले के विरोध में गुरिल्ला ढाबे की स्थापना की गई। इस साल जून में परिसर विकास समिति की ओर से उठाए गए इस कदम का ऐसे छात्रों ने बड़े पैमाने पर विरोध किया था जिन्हें यह फैसला यूनिवर्सिटी की रात की संस्कृति के लिए खतरा नजर आया था।
मोहित कुमार पांडेय की अध्यक्षता वाले पिछले जेएनयू छात्र संघ ने इस फैसले के विरोध में टी प्रोटेस्ट किया था। गुरिल्ला ढाबा की स्थापना हुए महज एक हफ्ते हुए हैं लेकिन छात्रों के बीच यह काफी चर्चा का विषय बन गया है।
इस ढाबे की स्थापना से जेएनयू की छात्राओं में असुरक्षा का भाव बहुत हद तक कम हुआ है। ढाबा की समन्वयकों में से एक स्वाती सिम्हा ने बताया, छात्राएं परिसर में सुरक्षित महसूस नहीं कर रही थीं। सुनसान सड़कों पर कुछ महिलाओं का पीछा किया गया था। लेकिन ढाबा शुरू होने के बाद तिराहे के पास हमेशा 30-40 छात्र रहते हैं जिससे परिसर ज्यादा जीवंत और सुरक्षित लगता है।
स्वाती ने बताया कि यूनिवर्सिटी में यौन उत्पीड़न के मामलों पर नजर रखने वाली और उन पर सुनवाई करने वाली संस्था जीएसकैश को भंग करने के हालिया फैसले से भी छात्र-छात्राओं में रोष था और ढाबा शुरू करने की एक वजह यह भी रही।
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