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हम बात कर रहे हैं दिल्ली के नजफगढ़ के प्रेमनगर बस्ती की। यहां रोजीरोटी चलाने के लिए बेटी-बहुओं को अपने जिस्म का सौदा करना पड़ता है और मर्द घर बैठकर अपने घर की औरतों की सौदेबाजी करते हैं। यहां के परना समुदाय के लोगों की रोजीरोटी पीढ़ियों से वेश्यावृत्ति पर निर्भर हैं। यहां लोग बेटियों के जन्म पर खुशियां मनाते हैं, लेकिन सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके पास कमाई का एक जरिया बढ़ जाता है। शादी से पहले मां-बाप सौदेबाजी कर खाते हैं तो शादी में लड़़की का सौदा कर बेच देते हैं। शादी के बाद पति और ससुरालवाले उसके लिए ग्राहकों की तलाश करते हैं।
घर की बहुएं-महिलाएं दिनभर घर का काम निपटाकर रात को तकरीबन 2 बजे घर से निकल जाती है। ग्राहकों की बुकिंग पहले ही हो चुकी होती है। एक ही रात में करीब 4-5 ग्राहकों को संतुष्ट करने के बाद वो सुबह फिर से अपने घर लौट जाती हैं। ये सिलसिला दिन-महीनों और सालों-साल चलता रहता है। कोई इसे रोकने वाला नहीं।
ऐसा नहीं है कि ये इस समुदाय का पेशा है इसलिये ये महिलाएं ऐसा जीवन जीने की आदी हो गई हैं। बहुत सी लड़कियों ने इसका विरोध करते हुए अपनी जान तक दे दी है। ये बच्चियां अपनी माओं को जाते देखती हैं, और खुद को डरा महसूस करती हैं कि उन्हें भी एक दिन जाना होगा। ये पढ़ना चाहती हैं, कोई और काम करना चाहती हैं। लेकिन 'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ' के नारे इन गलियों तक नहीं पहुंच पाते। फिर भी जिस्म बेचकर आती कुछ औरतों की उम्मीदें कायम हैं कि उनकी बेटियों का भविष्य बेहतर होगा।
पर इन उम्मीदों को सच करने वाले लोग, धर्म, देशभक्ति और देशद्रोह की बहस से ही बाहर नहीं निकल पा रहे। लोगों को देश की फ्रिक्र है, देश की इन महिलाओं पर हो रहे द्रोह के बारे में सोच भी लेंगे तो सारे पाप धुल जाएंगे।
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