किसानों, मजदूरों ने किया प्रदर्शन, नबंवर में 'लांग मार्च' की तैयारी
देश भर के हजारों किसानों, मजदूरों और सरकारी कर्मचारियों ने बुधवार को रामलीला मैदान से संसद तक मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया और नवंबर में राष्ट्रीय राजधानी में लांग मार्च निकालने का फैसला किया।
नई दिल्ली: देश भर के हजारों किसानों, मजदूरों और सरकारी कर्मचारियों ने बुधवार को रामलीला मैदान से संसद तक मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया और नवंबर में राष्ट्रीय राजधानी में लांग मार्च निकालने का फैसला किया। यह लांग मार्च दिल्ली से 100 किलोमीटर दूर से संसद तक निकाला जाएगा, जिस तरह इस साल की शुरुआत में 'नासिक-मुंबई लांग मार्च' निकाली गई थी। वामपंथी संगठनों-ऑल इंडिया एग्रीकल्चरल वर्कस यूनियन (एआईएडब्ल्यूयू), सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) और ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) ने छह घंटे तक चले विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था। विरोध प्रदर्शन में कहा गया कि सरकार कॉर्पोरेट और निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों, मजदूरों और अपने कर्मचारियों के हितों के खिलाफ काम कर रही है।
विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों ने सरकार के समक्ष अपनी 15 मांगे रखी हैं। उन्होंने फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप करने, महंगाई पर लगाम लगाने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली सबके लिए उपलब्ध कराने, रोजगार पैदा करने, न्यूनतम मजदूरी कम से कम 18,000 रुपये प्रति माह करने और श्रम कानूनों में संशोधन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उनकी अन्य मांगों में कर्जो में छूट देना, पुनर्वितरणकारी भूमि सुधार, जबरदस्ती जमीन अधिग्रहण पर प्रतिबंध लगाने, नवउदारवादी नीतियों को उलटने, और अनुबंध पर रोजगार देने पर प्रतिबंध लगाना शामिल है।
एआईकेएस के महासचिव हन्नान मुल्ला ने संसद मार्ग पर प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार की नीतियां किसान विरोधी, गरीब विरोधी, जनता विरोधी हैं। वास्तव में वे बड़ी कंपनियों और कॉर्पोरेट की हितैषी हैं। इस स्थिति से देशवासियों को अवगत कराने के लिए हम 27 से 30 नवंबर तक लांग मार्च निकालेंगे। असम से प्रदर्शन में शामिल होने आए तपन शर्मा ने कहा कि राज्य में खाने-पीने के सामान की उच्च कीमतों के बीच चाय बागान में काम करनेवाले मजदूरों को काफी कम मजदूरी दी जा रही है। शर्मा ने कहा कि पहले कांग्रेस थी, अब भाजपा सरकार है। लेकिन स्थिति जरा सी भी नहीं बदली है। चाय बागान के मजदूरों को महज 137 रुपये दिहाड़ी दी जा रही है, जबकि रोजाना की मजदूरी कम से कम 351 रुपये होनी चाहिए।
सीटू के महासचिव तपन सेन ने कहा कि सरकार ने सरकारी कंपनियों (पीएसयूज) का निजीकरण कर सरकारी कर्मचारियों के हितों के खिलाफ काम किया है। सेन ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि लोगों के लिए कोई अच्छे दिन नहीं आए हैं। अच्छे दिन केवल कॉर्पोरेट्स के आए हैं। इसलिए हम न्याय पाने तक अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। एआईकेएस के अध्यक्ष अशोक धवले ने कॉर्पोरेट कंपनियों को कर्ज देने और कर्ज माफ करने को लेकर सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि सरकार के पास कर्ज से लदे किसानों को राहत पहुंचाने के लिए पैसा नहीं है। लेकिन वह कॉर्पोरेट कंपनियों का कर्ज माफ कर रही है।