नयी दिल्ली: केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के सैकड़ों जवानों की सेवानिवृत्ति और पेंशन की प्रक्रिया 31 मई से अटकी पड़ी है क्योंकि गृह मंत्रालय ने इन बलों में सेवानिवृत्ति की एक मानक उम्र तय करने पर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं किया है। चार प्रमुख सीएपीएफ- केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के मुख्यालयों को उनकी क्षेत्रीय इकाइयों से लगातार संदेश मिल रहे हैं जिनमें आगे के निर्देश जारी करने की मांग की गयी है। लेकिन उन्हें तब तक यथास्थिति बनाकर रखने को कहा गया है जब तक सरकार अंतिम निर्णय नहीं ले लेती।
इन बलों के कई अधिकारियों ने यह बात कही। इन बलों द्वारा कई आदेश जारी किये गये हैं जिन्हें पीटीआई ने भी देखा है। इस संबंध में जब तक गृह मंत्रालय तथा कार्मिक तथा प्रशिक्षण विभाग अंतिम फैसला नहीं लेते तब तक प्रक्रिया को रोककर रखना होगा। अधिकारियों ने कहा कि कांस्टेबल स्तर से लेकर कमांडेंट स्तर तक सैकड़ों कर्मियों के लिए विदाई समारोह और सेवानिवृत्ति से जुड़ी प्रक्रिया को 31 मई से रोक दिया गया है। उन्होंने कहा कि कुछ बलों ने सेवानिवृत्त हुए जवानों से अंतिम निर्णय होने तक घर में रहने को कहा है, वहीं कुछ अन्य ने जवानों से दफ्तर आने लेकिन कोई काम नहीं करने को कहा है।
यह पूरा घटनाक्रम दिल्ली उच्च न्यायालय के जनवरी के एक आदेश से जुड़ा है जिसमें उसने सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी ... इन चारों बलों की सेवानिवृत्ति की अलग-अलग उम्र की मौजूदा नीति को असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण बताया था। अदालत ने कहा था कि इस नीति ने इन बलों में दो वर्ग बना दिये हैं। मौजूदा नीति के अनुसार गृह मंत्रालय के तहत आने वाले अन्य बलों- केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल तथा असम राइफल्स के सभी जवान 60 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं।
हालांकि सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी में कांस्टेबल से कमांडेंट स्तर के कर्मी 57 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं, वहीं उनसे उच्च स्तर के अधिकारी 60 वर्ष की उम्र में अवकाशप्राप्त करते हैं। उच्चतम न्यायालय ने 10 मई को केंद्र सरकार की एक विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी थी जिसमें सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी और कहा था कि ये मामले नीतिगत फैसलों से जुड़े हैं और इन पर फैसला अदालतें नहीं करतीं।
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