कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने एर्नाकुलम जिले के त्रिक्ककारा नगरपालिका क्षेत्र में सड़कों पर रहने वाले कुत्तों को जहर देने के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि कोई कुत्ता परिस्थितियों से खूंखार बनता है और यह महज धारणा है कि आवारा कुत्ते स्वभाव से खतरनाक होते हैं। न्यायमूर्ति ए के जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति पी गोपीनाथ की पीठ ने कहा कि गली के कुत्तों को मारना या अपंग करना लोगों को सुरक्षित रखने का तरीका नहीं है और बेहतर विकल्प कुत्तों को पकड़ना और पशु आश्रय स्थलों में उनका पुनर्वास करना है।
पीठ ने कहा, ‘‘इस तरह कठोर कार्रवाई से कुत्ते को नहीं पकड़ा जा सकता।’’ अदालत ने कहा कि गली के कुत्तों से खतरा महसूस करने वाले क्षेत्र के निवासियों और पशुओं के कल्याण के बीच संतुलन बनाए रखना होगा। अदालत ने नगरपालिका को अपने क्षेत्र में निजी संगठनों द्वारा संचालित पशु आश्रय स्थलों की पहचान करने का निर्देश दिया, जो गली के कुत्तों को पकड़ने और उन्हें अपने परिसर में आश्रय देने में सक्षम होंगे।
उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए निर्देश जारी किया कि वह समझता है कि वर्तमान में नगरपालिका ऐसे आश्रयों की स्थापना के लिए धन खर्च नहीं कर पाएगी। केरल सरकार को सभी जिलों में सरकार और निजी लोगों द्वारा चलाए जा रहे पशु आश्रय स्थलों का विवरण देने के लिए कहा गया। इन निर्देशों के साथ अदालत ने मामले की सुनवाई छह अगस्त के लिए सूचीबद्ध की।
अदालत ने कुत्तों को जहर देने के मामले में एक वीडियो उसके संज्ञान में लाए जाने के बाद सुनवाई शुरू की। मामले में नगरपालिका से अपना रुख बताने को कहने के साथ पीठ ने उसे यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि भविष्य में उसकी सीमा के भीतर ऐसी कोई घटना न हो और इसे सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त तंत्र स्थापित करें।
नगरपालिका ने सोमवार को अदालत को बताया कि इस मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं है। कुत्तों को जहर देकर मारने के मामले में आरोपी कनिष्ठ स्वास्थ्य निरीक्षक ने अग्रिम जमानत के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया और दावा किया कि उन्हें फंसाया गया।
उन्होंने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि नगरपालिका के अध्यक्ष और सचिव तथा स्वास्थ्य पर स्थायी समिति के अध्यक्ष ने कथित तौर पर उस दल को काम पर रखा था, जिसने गली के कुत्तों को मार डाला था।
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